बिहार की सभी प्रमुख दलों ने सवर्ण जाति पर किया फोकस.

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सिटी पोस्ट लाइव :बिहार की राजनीति में आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिल रहा है.लालू यादव की पार्टी हो या फिर नीतीश कुमार की सभी को सवर्ण जातियों का समर्थन चाहिए . अब तो कांग्रेस पार्टी ने भी अखिलेश प्रसाद सिंह को नया प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है.सभी पार्टियों ने सवर्ण वोटरों को साधने के लिए अपने दल में शीर्ष पद पर सवर्ण जाती के नेता को बिठा दिया है.जेडीयू, आरजेडी, भाजपा, या फिर कांग्रेस इन चारों पार्टियों के शीर्ष पद पर किसी न किसी रूप में सवर्ण समाज के नेता शीर्ष पर हैं. इन सभी का टारगेट ऑफ वोट ऊंची जाति के वोटर हैं. पिछड़ों की राजनीति करनेवाली पार्टियां अब सवर्ण वोटरों को रिझाने में जुटी है. माना जाता है कि भले सवर्ण का वोट प्रतिशत कम हो लेकिन, राजनीतिक शब्दों में सवर्णों को खाने का तड़का कहा जाता है। जिसके बिना राजनीति का स्वाद अधूरा रह जाता है.

कांग्रेस पार्टी का पूरा फोकस भी सवर्ण वोटरों पर है.सोमवार को कांग्रेस आलाकमान ने अखिलेश प्रसाद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है. भूमिहार जाति से आने वाले अखिलेश सिंह कभी लालू यादव के सिपहसालार हुआ करते थे. लेकिन, कांग्रेस में अपनी पैठ बनाते हुए अखिलेश प्रसाद सिंह प्रदेश के अध्यक्ष बन गए. इससे पहले भी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा जो ब्राह्मण जाति से आते थे. अभी के विधायक दल के नेता अजीत शर्मा भूमिहार है. विधान परिषद की बात करें तो, उच्च सदन में कांग्रेस के तीन एमएलसी हैं और वह तीनों ऊंची जाति के हैं. तो जाहिर सी बात है कांग्रेस पूरी तरह से सवर्ण वोटरों को साधने के लिए सवर्ण नेताओं पर दांव लगा रही है.

सोमवार को ही जेडीयू ने अपनी पुराने राष्ट्रीय अध्यक्ष को रिपिट करते हुए नया राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया. ललन सिंह को एक बार फिर से राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी गई. ललन सिंह भूमिहार जाति से आते हैं. मुंगेर से सांसद हैं और पार्टी में उनका बड़ा कद है. भले जेडीयू नीतीश कुमार को लेकर कुर्मी-कुशवाहा की पार्टी कहलाती है लेकिन, सवर्ण वोटरों को साधने के लिए जेडीयू ने अपना सबसे बड़ा पद राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह को दिया है.इससे पहले भी प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी वशिष्ठ नारायण सिंह को दी गई थी.वो लगातार तीन बार से अध्यक्ष रहे थे. लेकिन स्वास्थ्य के कारणों की वजह से उन्हें वह पद छोड़ना पड़ा . नीतीश कुमार के सबसे करीबी नेताओं में विजय चौधरी भूमिहार हैं और संजय झा ब्राह्मण हैं. ऐसे में जेडीयू ने भी सवर्णों के लिए एक दरवाजा खोल कर रखा हुआ है और उसे साधने के लिए ऐसे नेताओं का प्रयोग कर रही है.

पिछड़ों की राजनीति करनेवाली RJD के प्रदेश अध्यक्ष भी सवर्ण हैं.राजपूत समुदाय से आने वाले जगदानंद सिंह के हाथ में पार्टी की कमान है.जगदानंद सिंह जब नाराज हुए थे तो लगातार दो महीने तक राजद के तरफ से उन्हें मनाया गया था. लालू यादव ने जगदानंद सिंह को मनाकर फिर से उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी.जगदानंद सिंह का प्रेम यह बताता है कि यह सिर्फ जगदानंद सिंह के लिए ही प्रेम नहीं यह आरजेडी में ‘सवर्ण प्रेम’ के प्रतीक के रूप में उन्हें दोबारा प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर स्थापित किया गया है.पिछड़ों की राजनीति के धुरंधर खिलाड़ियों की समझ में अब ये बात आ गई है कि केवल सिर्फ मुस्लिम और पिछड़ों की वजह से चुनाव में सफलता नहीं मिलनेवाली. सत्ता के शीर्ष पर बैठना है तो उन्हें सवर्णों का साथ चाहिए .यही वजह है जिस पिछड़ों की राजनीति के लिए लालू यादव जाने जाते थे, उनके पुत्र तेजस्वी यादव ने अपनी पार्टी को नया फार्मूला ए टू जेड का दिया है.

भाजपा में नरेंद्र मोदी और अमित शाह युग शुरू होने के बाद से लगातार पिछड़ों, अति पिछड़ों पर फोकस किया गया. बिहार जैसे राज्य में अपेक्षाकृत सफलता नहीं मिली. अब एक बार फिर से भाजपा सवर्ण पर फोकस करने लगी है. भाजपा के बारे में कहा जाता है कि वह चाहे या फिर ना चाहे उन्हें सवर्ण को साथ रखना होगा. यही वजह है की विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनाने की बारी आई तो भाजपा ने भूमिहार जाति से आने वाले विजय कुमार सिन्हा को नेता प्रतिपक्ष का नेता बनाया. भाजपा के तरफ से माना जाता है कि भले दूसरी जातियां उनको वोट दे या ना दे लेकिन, उनके कैडर वोटर स्वर्ण जाति के लोग हैं. इसी वजह से भाजपा की मजबूरी है कि वह सवर्ण जाति के नेताओं पर दांव खेले.

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