सिटी पोस्ट लाइव :JDU और RJD के विलय की चर्चा राजनीतिक गलियारे में जोरशोर से चल रही है.सूत्रों के अनुसार RJD-JDU दोनों को मिलाकर एक नयी राजनीतिक पार्टी के गठन का ऐलान हो सकता है.आने वाले समय में बिहार की तीसरी बड़ी पार्टी नीतीश कुमार की जेडीयू लालू-तेजस्वी की राजद के साथ मिलकर तीसरी नई पार्टी बना सकते हैं जिसका चुनाव चिह्न ना लालटेन हो, ना तीर. जिसका नाम ना आरजेडी हो, ना जेडीयू.राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय सम्मेलन में भोला यादव के द्वारा रखे गये प्रस्ताव से भी ये साफ़ है कि लालू-नीतीश द्वारा एक नए दल बनाने की तैयारी चल रही है.
दिल्ली में 10 अक्टूबर को राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय सम्मेलन में लालू यादव लगातार 12वीं बार आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गये. इस दौरान खुले सत्र में हजारों आरजेडी कार्यकर्ताओं और नेताओं की मौजूदगी में लालू के हनुमान कहे जाने वाले आरजेडी नेता भोला यादव ने संविधान संशोधन का एक चौंकाने वाला प्रस्ताव रखा. ये तालियों की गड़गड़ाहट के बीच पास हो गया लेकिन इसकी उतनी चर्चा नहीं हुई क्योंकि पार्टी के द्वारा मीडिया को जारी बयान या प्रस्ताव में इसका जिक्र नहीं था. भोला यादव वही नेता हैं जिन्हें सीबीआई ने कुछ महीने पहले लालू के रेलमंत्री रहते नौकरी के बदले जमीन घोटाला मामले में गिरफ्तार कर लिया था.
आरजेडी के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज झा ने मंच पर भोला यादव को आमंत्रित करते हुए कहा कि वो संविधान संशोधन प्रस्ताव और लालू यादव को कुछ मामलों के लिए अधिकृत करने के संदर्भ में प्रस्ताव रखेंगे. फिर भोला यादव आते हैं और कहते हैं- “मैं ये प्रस्ताव रखता हूं कि राष्ट्रीय जनता दल का संविधान एवं नियम की धारा 35 के अंतर्गत संविधान में परिवर्तन करने के अधिकार के तहत पार्टी संविधान के नियम की धारा 30 में यह प्रस्ताव करता हूं कि राष्ट्रीय जनता दल के नाम या इसके चुनाव चिह्न लालटेन से संबंधित और अन्य जुड़े हर मामले में अंतिम निर्णय माननीय राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री लालू प्रसाद या राष्ट्रीय जनता दल के सम्मानित नेता श्री तेजस्वी प्रसाद यादव का ही होगा. ये सर्वाधिकार सिर्फ लालू प्रसाद या श्री तेजस्वी प्रसाद यादव में ही सन्निहित होगा. यदि आप लोग इसके पक्ष में हैं तो हाथ उठाकर समर्थन कीजिए.” खुले सत्र में मौजूद आरजेडी नेता और कार्यकर्ताओं ने हाथ उठाकर इसे पास कर दिया.”
लालू यादव ने बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान 5 जुलाई, 1997 को जनता दल को तोड़कर राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया था. लालू तब चारा घोटाला में फंसने और सीबीआई द्वारा आरोपी बनाने के बाद अपनी पार्टी जनता दल के नेताओं की तरफ से इस्तीफे के दबाव में थे.कुछ दिन बाद वारंट निकला तो लालू ने 25 जुलाई, 1997 को इस्तीफा देकर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सीएम पद पर बिठा दिया. 25 साल पुरानी पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न से जुड़े मामलों में निर्णय लेने के लिए खुद को अधिकृत करवाने का संविधान संशोधन लालू या तेजस्वी को क्यों करवाना पड़ा? इसका अनकहा जवाब ये है कि लालू यादव और तेजस्वी यादव पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न बदल सकते हैं. थोड़ा और खोलकर मतलब निकालें तो ये है कि लालू यादव और तेजस्वी यादव आरजेडी का नाम और चुनाव चिह्न आने वाले समय में बदलना चाहते हैं या बदलने की तैयारी में हैं जिसकी भूमिका रखते हुए संविधान में नया नियम डलवा दिया गया है ताकि समय पर दोनों में से कोई भी ये फैसला ले सके.
जेडीयू छोड़ चुके पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह दावा कर चुके हैं कि नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू का लालू की आरजेडी में विलय हो जाएगा. बिहार में लगातार बीजेपी के नेता भी इस तरह की बातें कर रहे हैं. सुशील मोदी ने भी कहा था कि जेडीयू का राजद में विलय होगा क्योंकि नीतीश के बाद इसका कोई भविष्य नहीं है. जगदानंद सिंह ने 2023 में तेजस्वी के सीएम बनने का दावा किया था. आरजेडी के संविधान में इस संशोधन के बाद इन सब बातों में वजन आ रहा है.तो क्या ये माना जाए कि 2023 में आरजेडी में जेडीयू का विलय होगा या दोनों मिलकर कोई नई पार्टी बनाएंगे. आरजेडी में इससे पहले दो पार्टियों का विलय हो चुका है. देवेंद्र यादव की समाजवादी जनता दल और शरद यादव की लोकतांत्रिक जनता दल का आरजेडी में विलय हुआ तो लालू यादव ने ना पार्टी का नाम बदला और ना ही चुनाव चिह्न. विलय की सूरत में एक पार्टी का अस्तित्व खत्म होता है जबकि दूसरी बनी रहती है.
तो फिर पार्टी के संविधान में नाम बदलने या चुनाव चिह्न बदलने के अधिकार जैसा नियम डालने की जरूरत अब क्यों महसूस हुई है ? इसका एक जवाब ये है कि नीतीश कुमार जेडीयू का विलय करने को तैयार भी होते हैं तो वो एक नई पार्टी बनाने की शर्त रख सकते हैं जिसकी भूमिका आरजेडी के संविधान में संशोधन से लिखी गई है. नई पार्टी बनती है तो आरजेडी, जेडीयू, लालटेन और तीर सब गायब होगा।.नई पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न लालू, तेजस्वी और नीतीश को तय करना होगा. और अगर ऐसा होता है तो उसे आरजेडी में जेडीयू का विलय कहने से अच्छा ये कहना होगा कि आरजेडी और जेडीयू मिलकर नई पार्टी बना रहे हैं.
केंद्र में भाजपा और नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद जनता दल से टूटकर निकले समाजवादी नेताओं ने 2015 में मिलकर जनता परिवार बनाने का ऐलान किया था जिसमें मुलायम सिंह यादव की सपा, लालू यादव की आरजेडी, नीतीश कुमार की जेडीयू, एचडी देवगौड़ा की जेडीएस, अभय चौटाला की आईएनएलडी और कमल मोरारका की सजपा शामिल हुई थी.शरद यादव ने तब इन सारे नेताओं की मौजूदगी में कहा था कि नई पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न का ऐलान बाद में किया जाएगा. वो तारीख फिर नहीं आई.उस समय जेडीयू अध्यक्ष रहे शरद यादव ने बाद में एक पार्टी बनाई और आगे चलकर उसका आरजेडी में विलय कर दिया. उस मीटिंग में लालू यादव और नीतीश कुमार भी शामिल हुए थे.