R+C+P… यही मंडली लालू का भी प्लान ‘खरमंडल’ करने की जुगत में
Bihar Politics
सिटी पोस्ट लाइव :आरजेडी के नेताओं के बयानों से तो इतना साफ जाहिर है कि लालू के मन में क्या चल रहा है.लालू यादव अपने बेटे तेजस्वी यादव को बिहार का मुख्यमंत्री और नीतीश कुमार को पीएम बनाना चाहते हैं. नीतीश कुमार के महागठबंधन में आने के बाद से ही आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव बेहद उत्साह में हैं. लालू प्रसाद यादव ने नीतीश कुमार को पीएम पद का दावेदार मान भी लिया है. अब ये अलग बात है कि आरजेडी के दावों के उलट नीतीश दिल्ली से पटना तक यही कह रहे हैं कि उनकी प्रधानमंत्री बनने की इच्छा नहीं है.
लेकिन ये मुकाबला न तो नीतीश और न ही लालू के लिए आसान हैं क्योंकि उनके सामने तीन रोड़े हैं.रामचंद्र प्रसाद सिंह- ये वो नेता हैं जो नीतीश के मिशन पीएम की राह के सबसे बड़े रोड़े हैं. हालांकि आरसीपी अभी सिर्फ नीतीश की बातों का जवाब दे रहे हैं. लेकिन अंदरखाने चर्चा है कि RCP सिंह ने न सिर्फ नीतीश बल्कि JDU के कई नेताओं के राज सीने में दफन कर रखे हैं. उनके एक समर्थक ने यही सवाल पूछने पर नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि ‘रामचंद्र बाबू कंस्ट्रक्टिव राजनीति करने वाली शख्सियत हैं, अगर वो चाहें तो नीतीश कुमार का काफी कुछ बिगाड़ सकते हैं लेकिन वो बिल्कुल आखिरी अस्त्र होगा, जिसे दागने से पहले काफी मंथन किया जाएगा।’ यानि रामचंद्र प्रसाद सिंह चाहें तो लालू यादव का पूरा प्लान ही खरमंडल (हिंदी में बिगाड़ना) कर सकते हैं.
दुसरे सबसे बड़े रोड़े हैं चिराग पासवान- इनके बारे में तो जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह खुलेआम कह चुके हैं कि 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग मॉडल बनाकर जेडीयू को 43 सीटों पर समेट दिया गया. यानि डर तो है, होना भी चाहिए, क्योंकि पासवान समुदाय का करीब 4-5 फीसदी वोट बैंक चिराग के साथ मजबूती से खड़ा है. अब भले ही घर में अनबन हो, लेकिन चाचा (पशुपति) और भतीजे (चिराग) के लिए नीतीश सियासी दुश्मन नंबर एक हैं. ऐसे में नीतीश-लालू का खेल खरमंडल करने में ये भी अहम भूमिका निभा सकते हैं.
तीसरे सख्श हैं प्रशांत किशोर- इनको तो खासतौर पर नीतीश कुमार भी हल्के में नहीं ले सकते. JDU को चिंता इस बात की नहीं कि पीके यानि प्रशांत किशोर बीजेपी के साथ नहीं हैं, चिंता तो इस बात की है कि वो नीतीश के खिलाफ हैं. अब 2015 का चुनाव नीतीश महागठबंधन लालू की वजह से जीते या पीके की वजह से, ये अलग बात है. लेकिन ये तो बिल्कुल सही है कि NDA से अलग होने के बाद नीतीश के लिए खुद को बीजेपी और खासतौर पर पीएम नरेंद्र मोदी को कड़ी टक्कर देने की चुनौती है. ऐसे में वो ये बिल्कुल नहीं चाहेंगे कि उनके खिलाफ ब्रांडिंग का बादशाह नेगिटिव प्रचार करे. सूत्र तो यहां तक बता रहे कि पीके को मनाने की जिम्मेदारी नीतीश ने पवन वर्मा को सौंप भी दी है.