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राष्ट्रपति चुनाव में लड़ने से पहले ही हारते दिख रहे हैं यशवंत सिन्हा.

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सिटी पोस्ट लाइव : अब NDA के राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मूर्मू की जीत पक्की हो गई है.पहले यशवंत सिन्हा के नाम पर जिस तरह से विपक्ष एकजुट हुआ था लग रहा था लड़ाई कांटे की हो सकती है.लेकिन एक आदिवासी महिला को NDA ने उम्मीदवार बनाकर यशवंत सिन्हा को लड़ाई से बाहर कर दिया है.जिन लोगों ने यशवंत सिन्हा को आगे किया था वहीँ अब साथ छोड़ते नजर आ रहे हैं.विपक्ष की एकता ख़त्म होतु नजर आ रही है. यशवंत सिन्हा को समर्थन का भरोसा देने वाले कई दल यू-टर्न ले चुके हैं. बीजेपी के आदिवासी कार्ड ने विपक्षी एकजुटता की चादर पर लगे पैबंदों को उधेड़ दिया है.

पटना में शुक्रवार को एक होटल में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव, यशवंत सिन्हा, सुधींद्र कुलकर्णी और शत्रुघ्न सिन्हा एक दूसरे का हाथ पकड़ ऊपर की ओर लहराते नजर तो आये लेकिन उनके चेहरे या तो लटके हुए थे . जबरन मुस्कुराने की कोशिश करते दिखाई दे रहे थे.पिछले महीने विपक्षी दलों ने जब यशवंत सिन्हा को संयुक्त उम्मीदवार बनाने का ऐलान किया तब ऐसा लग रहा था कि राष्ट्रपति चुनाव रोचक होगा. एनडीए का पलड़ा भले ही थोड़ा सा भारी रहे लेकिन विपक्ष की तरफ से दमदार टक्कर मिलेगी. लेकिन जैसे-जैसे राष्ट्रपति चुनाव करीब आता गया, सिन्हा एक तरह से मुकाबले से ही बाहर हो गए.

ममता बनर्जी की पहल पर 21 जून को हुई विपक्षी दलों की बैठक में सिन्हा की उम्मीदवारी का फैसला किया गया. विपक्ष की उस बैठक से बीएसपी, बीजेडी, टीडीपी, अकाली दल, आईएसआर कांग्रेस जैसे कई दल दूर रहे। फिर भी सिन्हा को समूचे विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार के तौर पर पेश करके 2024 से पहले विपक्षी एकजुटता के इजहार की भरपूर कोशिश हुई. लेकिन हालात तब बदल गए जब बीजेपी की अगुआई वाले एनडीए ने द्रौपदी मूर्मू के रूप में अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान किया. बीजेपी के आदिवासी कार्ड से विपक्षी एकजुटता की चादर में लगे पैबंद उधड़ गए. जिनसे सिन्हा को आस थी उनमें से कई एक-एक करके उन्हें छोड़ने लगे.

सिन्हा की मुश्किल का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिनकी पहल पर वह उम्मीदवारी के लिए राजी हुए, अब उनके ही समर्थन पर संशय है. ममता बनर्जी ने द्रौपदी मूर्मू के नाम के ऐलान के बाद सिन्हा को पश्चिम बंगाल आने से मना कर दिया। कह दिया कि प्रचार अभियान के तहत बंगाल आने की जरूरत नहीं है, वह संभाल लेंगी. बाद में द्रौपदी मूर्मू को लेकर ममता के सॉफ्ट स्टैंड के बाद सिन्हा को टीएमसी के समर्थन पर भी संशय के बादल छा गए हैं. सिन्हा को समर्थन को लेकर ममता बनर्जी का पसोपेश तब सामने आया जब उन्होंने यह कहा कि अगर मोदी सरकार पहले ही मूर्मू के नाम का ऐलान कर देती तो राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार को लेकर आम सहमति बन सकती है. दीदी ने कहा कि सरकार ने राष्ट्रपति चुनाव को लेकर उनसे संपर्क तो किया लेकिन मूर्मू के नाम का खुलासा नहीं किया.

एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर ममता बनर्जी के अचानक नरम रुख अख्तियार करने के पीछे उनकी एक बड़ी मजबूरी है. बंगाल में आदिवासी समुदाय की हिस्सेदारी 6 प्रतिशत के करीब है। इनकी तादाद करीब 53 लाख है. पश्चिम बंगाल में आदिवासी जनसंख्या पूरे राज्य में बिखरी हुई नहीं बल्कि कुछ खास हिस्सों जैसे नॉर्थ बंगाल और जंगल महल में केंद्रित है. मूर्मू आदिवासियों के संथाल समुदाय से आती हैं. पश्चिम बंगाल की आदिवासी आबादी में 80 प्रतिशत संथाल हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में आदिवासी इलाकों में बीजेपी का प्रदर्शन काफी अच्छा था. लिहाजा ममता को आदिवासी वोटबैंक छिटकने का डर सता रहा है.

द्रौपदी मूर्मू की जीत तो एक तरह से तभी तय हो गई जब नवीन पटनायक की बीजेडी और जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस ने उन्हें समर्थन का ऐलान किया. एक तरफ मूर्मू की दावेदारी लगातार मजबूत हो रही है, दूसरी तरफ यशवंत सिन्हा को समर्थन का भरोसा देने वाले कई दल यू-टर्न ले चुके हैं. राष्ट्रपति चुनाव को लेकर दिल्ली में 15 और 21 जून को हुई बैठक से बीएसपी, अकाली जैसे कई दल दूर रहे. लेकिन जो विपक्षी दल बैठक में मौजूद रहें और जिन्होंने सिन्हा की उम्मीदवारी का समर्थन किया था, उनमें से कई अब पलटी मार चुके हैं.अब चूंकि पर्चा भर दिया है तो लड़ने की मजबूरी है. लड़ते हुए दिखने की भी मजबूरी है. लड़ रहे हैं इसलिए कि अब लड़ना जरूरी है.। आखिर जिनके साथ से आस था जब वो भी अकेला छोड़ रहे तो जीत की उम्मीद कर भी कैसे सकते हैं.

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