सिटी पोस्ट लाइव : होली रंगों का त्यौहार है.बाज़ार में ऐसे ऐसे केमिकल्स मिले रंग आ रहे हैं जो चेहरे बिगाड़ देते हैं.ऐसे रंगों से बचाने के लिए गया के वन विभाग और प्रेरणा संस्था की टीम डुंगेश्वरी पहाड़ी के पास हर्बल गुलाल बना रही है. यह गुलाल पूरी तरह से हर्बल है. उसमें किसी तरह का केमिकल नहीं मिलाया गया है. गया के विष्णुपद और महाबोधि मंदिर में चढ़ाए गए फूल इकट्ठा कर यहां लाए जाते हैं और फिर उन्हें उबालकर-सुखाकर हर्बल गुलाल बनाया जाता है.
बिहार की धार्मिक नगरी गया के विश्व प्रसिद्ध मंदिर विष्णुपद और महाबोधि में हर दिन हजारों लोग भगवान विष्णु और बुद्ध के चरणों पर पुष्प अर्पित करते हैं. फिर ये फूल कूड़े में फेंक दिए जाते हैं. लेकिन अब ये फूल कूड़े में नहीं फेंके जाएंगे. इन्हें रिसाइकल कर इनसे गुलाल बनाया जाएगा.गया का जिला वन विभाग इन दोनों मंदिरों से निकलने वाले फूल से गुलाल बनाना शुरू कर चुका है. पूरे देश में इन दिनों कूड़ा बहुत बड़ा संकट होता जा रहा है. इसलिए केंद्र और राज्य सरकारें कूड़े की रिसाइकलिंग उन्हें फिर से उपयोग किए जाने लायक प्रोडक्ट तैयार कर रही हैं. इसी के तहत वन विभाग ने गया जिले में खास पहल की है. डुंगेश्वरी वन समिति और फॉरेस्ट डेवलपमेंट एजेंसी की मदद से वन विभाग ने विष्णुपद और महाबोधि मंदिर से पूजा के बाद निकलने वाले फूलों से गुलाल बनाना शुरू कर दिया है. इससे मंदिरों में फूलों से लगने वाले कूड़े का संकट भी खत्म हो गया और दर्जनों लोगों को रोजगार भी उपलब्ध हुआ.
बिहार में 17-18 मार्च को होली मनाई जाएगी, जिसको लेकर सभी जगह पर तैयारियां भी शुरू कर दी गई हैं. इस होली को इको फ्रेंडली होली बनाने के लिए हर्बल गुलाल के इस्तेमाल पर जोर दिया रहा है.फूलों से बना गुलाल का रंग बहुत ही बढ़िया है. इससे किसी को कोई हानि नहीं होती है. अगर गलती से आंख या मुहं में चला भी जाए तो नुकसान नहीं पहुंचेगा. केमिकल वाले रंग हमारे चेहरे के स्कीन को काफी नुकसान पहुंचाते हैं. डॉक्टरों के अनुसार बाजारों में केमिकल युक्त रंग गुलाल बिक रहे हैं. इसके इस्तेमाल से स्किन पर खुजली और आंखों में जलन की समस्या उत्पन्न हो सकती है.