कबतक राज्य और देश की राजनीति में प्रासंगिक बने रहेगें लालू यादव?

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सिटी पोस्ट लाइव :लालू यादव देश के ऐसे पहले राजनेता हैं जो बार बार जेल जाने के वावजूद भी आजतक राजनीतिकरूप से अप्रासंगिक नहीं हुए. 1995 में पहली बार अपनी ताकत से सत्ता में आए लालू प्रसाद जब दो साल बाद ही चारा घोटाले में जेल चले गए, चारा घोटाले की जेल यात्रा से तनिक भी कुंठित नहीं हुए. जेल से लौटने के लिए उन्होंने राजसी सवारी हाथी का चयन किया. जेल यात्रा के अगले साल 1998 में लोकसभा का चुनाव हुआ. साल भर पहले बना RJD 17 सीटों पर जीता. अगर जेल जाने से वोट प्रभावित होता तो RJD को इतनी सीटें शायद नहीं मिलती.

तबसे लेकर अबतक चारा घोटाले में लालू यादव कीबार जेल yatra कर चुके हैं.चारा घोटाले में जब वो पहलीबार दोषी ठहराए गए तो लगा कि उनकी राज्य और देश की राजनीति में प्रासंगिकता ख़त्म हो जायेगी.सत्ता में आने के बाद लालू प्रसाद जब कभी जेल गए, उनकी प्रासंगिकता खत्म होने का अनुमान लगाया गया.लेकिन सच्चाई ये है कि आजतक लालू यादव राज्य और देश की राजनीति में प्रासंगिक बने हुए हैं.

1999 के लोकसभा चुनाव में सात सीटों पर सिमट जानेवाला RJD पांच साल बाद बिहार में लोकसभा की 40 में से 22 सीटों पर जीत हासिल कर लिया. 2005 से 2015 तक RJD के समाप्त होने की अटकलें लगाईं गईं लेकिन 2015 के चुनाव में JDU और कांग्रेस के साथ दोस्ती कर लालू प्रसाद ने फिर से अपनी राजनीतिक ताकत का अहसाश करा दिया.2020 के विधानसभा चुनाव परिणाम से ये साबित हो गया कि लालू यादव के बाद भी उनकी पार्टी का दबदबा कायम रहेगा.

इसमे शक की कोई गुंजाइश नहीं कि मंडल की राजनीति के प्रार्दुभाव के बाद हिंदी पट्टी में लालू यादव की नायक के रूप में जो पहचान बनी आज भी वो कायम है. मंडल के नाम पर अनुसूचित जातियों, पिछड़ों की गोलबंदी हुई.मुसलमानों को अपने साथ जोड़कर लालू यादव एक बड़ी राजनीतिक ताकत बन गए.इस समय भी हिंदी पट्टी की राजनीति में इन्हीं समूहों को एक रखने या अलग-अलग करने की राजनीति चल रही हैं.आज मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इन्हीं समूहों के बल पर एक मजबूत नेता बने हुए हैं.BJP लाख कोशिशों के वावजूद पूरी तरह से इस गोलबंदी को कमजोर नहीं कर पाई है.

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