सिटी पोस्ट लाइव :एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (आद्रि) के संस्थापक डा. शैबाल गुप्ता को मरणोपरांत पद्मश्री सम्मान मिला है.गौरतलब है कि शैबाल गुप्ता ने बिहार ब्रांड को अर्थशास्त्र से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई. बिहार की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए उनके नेतृत्व में कई शोध किए गए जिसका लाभ राज्य व केंद्र की सरकार को भी मिला.सामाजिक कार्यों के लिए बिहार के आचार्य चंदनाजी को पद्मश्री दिए जाने का ऐलान किया गया, जबकि शैवाल गुप्ता को मरणोपरांत यह सम्मान साहित्य और शिक्षा में विशिष्ट योगदान के लिए दिया जा रहा है. इन दोनों को पद्मश्री मिलने की घोषणा पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रसन्नता जताई है. बता दें कि इस बार चार हस्तियों को पद्म विभूषण सम्मान दिया गया है.
भारत सरकार ने साल 2022 के पद्म पुरस्कारों (Padma Awards) का जो ऐलान किया है उसमे बिहार के दो विभूतियों के नाम शामिल हैं.. आचार्य चंदनाजी को सामाजिक कार्यों के लिए और शैवाल गुप्ता को मरणोपरांत पद्मश्री दिए जाने का ऐलान किया गया है. यह सम्मान साहित्य और शिक्षा में विशिष्ट योगदान के लिए दिया जा रहा है. इन दोनों को पद्मश्री मिलने की घोषणा पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रसन्नता जताई है.
आचार्य चंदनाजी राजगीर विरायतन में 53 सालों मानव सेवा में जुटे हैं. मूल रूप से वे महाराष्ट्र के अहमदनगर के रहने वाले हैं. आचार्य चंदनाजी मानते हैं कि बिहार उनकी कर्मभूमि है. पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री पुरस्कार भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में शामिल हैं. ये पुरस्कार भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष भारतीय नागरिकों को उनके असाधारण कार्यों के लिए प्रदान किए जाते हैं. पद्म भूषण सम्मान 17 और पद्मश्री पुरस्कार 107 लोगों को दिया गया है.
अविभाजित बिहार का हिस्सा रहे झारखंड के गिरधारी राम गोंझू को भी पद्मश्री का सम्मान मरणोपरांत दिया जा रहा है. उन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में मरणोपरांत यह सम्मान दिया जा रहा है. अप्रैल 2021 में गोंझू जी का निधन हो गया था. वे मूलतः नागपुरी भाषी थे और इसे झारखंड में संपर्क भाषा के रूप में बढ़ाने में वीपी केसरी के साथ महत्वपूर्ण काम किया था. गिरधारी राम गोंझू की पुस्तक ‘कोरी भर पझरा’ चर्चित रही है. पझरा का मतलब पानी का सोता होता है.
अपने वक्तृत्व कला की वजह से भी वे झारखंडी साहित्य और संस्कृति के बड़े पैरोकार के रूप में जाने गए. डॉ गिरधारी राम गोंझू रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा विभाग के पूर्व अध्यक्ष भी थे. जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा विभाग के अध्यक्ष रहते हुए वे हिंदी साहित्यकारों के संपर्क में भी आए और कई महत्वपूर्ण आयोजनों में सक्रिय रहे. रांची के एक दैनिक अखबार में वे माय माटी के नियमित लेखक भी रहे.