सिटी पोस्ट लाइव :बिहार में शराबबंदी कानून के तहत लगातार कारवाई हो रही है.अवैध शराब के कारोबारी, चोरी चुप्पे शराब का सेवन करनेवाले पकडे जा रहे हैं.उसी अनुपात में कोर्ट में जमानत की अर्जी के मामले भी कोर्ट के सामने आ रहे हैं. इस प्रक्रिया ने न्यायालयों के काम काज को बुरी तरह से बाधित कर दिया है.बढ़ रही जमानत याचिकाओं को देखते हुए पटना हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है.पटना हाईकोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय को जो जानकारी दी है इसके अनुसार 39, 622 जमानत के लिए जो आवेदन पड़े हैं इनमें 21 ,671 अग्रिम और 17,951 नियमित जमानत लंबित हैं. इसके अलावा 20,498 अग्रिम और 15,918 नियमित जमानत याचिकाओं साहित 36,416 ताजा जमानत आवेदनों पर विचार किया जाना बाकी रह गया है.
पटना उच्च न्यायालय द्वारा इस बात की भी जानकारी दी गई है कि जजों के स्वीकृत पदों से आधे से भी कम के साथ फिलहाल काम करना पड़ रहा है, इसलिए याचिकाओं के निपटारे में भी विलंब हो रहा है.पटना हाईकोर्ट ने जो जानकारी दी है उसके अनुसार लगभग 25% नियमित जमानत याचिका केवल शराबबंदी से जुड़ी हुई हैं.गौरतलब है कि इस बात को लेकर हाल में ही सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने भी टिप्पणी की थी.
गौरतलब है कि याचिकाकर्ता अभयानंद शर्मा द्वारा पटना हाईकोर्ट में मामलों के सूचीबद्ध नहीं होने के कारण सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका दायर की थी. इस मामले में पटना हाई कोर्ट का पक्ष लेते हुए अधिवक्ता गौरव अग्रवाल द्वारा शीर्ष सुप्रीम कोर्ट को यह बताया गया है कि मामलों के निपटाने की निगरानी मुख्य न्यायाधीश द्वारा रोजाना की जा रही थी. न्यायाधीश अजय रस्तोगी और न्यायाधीश अभय ओका की पीठ द्वारा हाईकोर्ट में जमानत याचिकाओं के लंबित रहने पर चिंता जाहिर की गई थी.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा अधिवक्ता शोएब आलम के दिए गए सुझाव से सहमति जाहिर की गई. जिसमें कहा गया था कि उच्च न्यायालय पर बोझ कम करने के लिए धारा 436 A सीआरपीसी के प्रावधानों को नियोजित किया जाना चाहिए. यह किसी को भी वैधानिक जमानत प्रदान करने में सक्षम बनाता है. इसके पहले भी 11 जनवरी को मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने बिहार सरकार की उन याचिकाओं को खारिज कर दिया था जिसमें कड़े शराबबंदी कानून के तहत आरोपियों को अग्रिम और नियमित जमानत देने को चुनौती दी गई थी.