सिटी पोस्ट लाइव : खेतों में फसलों के अवशेष जलाने से होने वाले नुकसान को रोकने के लिए कृषि सचिव डॉ. एन सरवण कुमार ने शुक्रवार को विकास आयुक्त की अध्यक्षता में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग हुई. जिसमें पटना, मगध, सारण, मुंगेर, दरभंगा तथा तिरहुत प्रमंडल में आने वाले डीएम को कई निर्देश दिये गए. साथ ही उन्होंने पराली प्रबंधन के रोहतास मॉडल को विस्तार देने की सलाह भी दी.
फसल अवशेष को लेकर समीक्षात्मक बैठक में कृषि सचिव ने सभी डीएम को निर्देश दिया कि जिला व प्रखण्ड कृषि कार्यालयों में फसल अवशेष को खेतों में जलाने वाले किसानों की सूची को प्रकाशित किया जाएगा. इससे दूसरे किसानों को सीख मिलेगी. फसल अवशेष का उपयोग करने के लिये कृषि विज्ञान केंद्र पटना, नालंदा, रोहतास, कैमूर, भोजपुर, बक्सर, अरवल, गया, औरंगाबाद तथा बांका में बायोचार इकाई का निर्माण किया जा रहा है.
जागरूकता अभियान भी चलाने के निर्देश दिये हैं. सभी डीएम अब फसल कटनी के पूर्व सभी कंबाईन हार्वेस्टर के मालिक-किसान अथवा चालक से फसल अवशेष नहीं जलाने का शपथ-पत्र लेंगे. कृषि सचिव ने बताया कि रोहतास में कृषि विज्ञान केन्द्र के पॉयलट प्रोजेक्ट मॉडल पर फसल अवशेष प्रबंधन किया जाये. यदि कोई पराली जलाने की गलती करता है तो उसे खेती के लिए मिलने वाली सरकारी सुविधाओं से वंचित कर दिया जायेगा.
बता दें पराली को जलाने से सिर्फ पर्यावरण ही दूषित नही होता बल्कि जमीन के पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं। पराली को आग लगाने से एक एकड़ में 25 किलो पोटाश और पांच किलो नाइट्रोजन नष्ट हो जाती है। फसल के अवशेष को जलाने से फसल के ऊपरी परत में मौजूद सूक्ष्म जीवों को नुकसान होता है। इससे मिट्टी की जैविक गुणवत्ता प्रभावित होती है। पराली जलाने से पर्यावरण के नुकसान से अधिक मिट्टी की उर्वरा शक्ति प्रभावित होती है। केवल एक टन पराली जलाने से 5.5 किग्रा नाइट्रोजन, 2.3 किग्रा फासफोरस, 25 किग्रा पोटैशियम और 1.2 किग्रा सल्फर जैसे मिट्टी के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं.