FATHER’s DAY: बाप नहीं बन पाने की एक मार्मिक व्यथा-कथा जो आपको रख देगी हिलाकर

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दिल्ली के कोटला मुबारकपुर इलाके में छोटे से कमरे में एक पुराना पंखा फ़ुल स्पीड से चल रहा है. पंखे की हवा से रसोई गैस की लौ बुझते-बुझते बचती है. दुर्गा सिंह लौ को एक थाली से ढंकते हैं और फिर चौकी पर बैठकर बात करने लगते हैं.38 साल के दुर्गा सिंह पिता बनने की ख़्वाहिश में उत्तर प्रदेश के बाराबंकी ज़िले से दिल्ली आए थे. शादी के पांच-छह साल बाद भी जब उनका कोई बच्चा नहीं हुआ तो उन्होंने गांव छोड़कर दिल्ली आने का फ़ैसला किया. शादी के 16 साल बाद भी आज दुर्गा सिंह को कोई बच्चा नहीं है.बच्चे के लिए उन्होंने दसियों अस्पतालों का चक्कर लगाया, मंदिरों में पूजा की और मज़ारों पर मन्नत मांगी, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ.उन्होंने बताया, “शादी के वक़्त मेरी उम्र 20-22 साल और मेरी पत्नी पूनम की उम्र 18-19 साल रही होगी. शादी के बाद दो-तीन साल तक तो हमें फ़िक्र नहीं हुई, लेकिन पांच-छह साल बीतने पर हमें थोड़ी चिंता हुई.”

पहले दुर्गा सिंह ने बाराबंकी के ही एक अस्पताल में डॉक्टर को दिखाया. वो बताते हैं, “दवाइयां बहुत महंगी थीं, लेकिन फिर भी हमने इलाज जारी रखा. फ़ायदा न होने पर लखनऊ के एक अस्पताल में गए. वहां से भी कोई कामयाबी नहीं मिली तो किसी जाननेवाले ने दिल्ली आने की सलाह दी.”इस तरह एक बच्चे की तमन्ना ने दुर्गा सिंह और पूनम को अपने गांव से दिल्ली जैसे अनजान शहर में ला पटका. दिल्ली आकर उन्होंने कोटला में एक कमरा किराए पर लिया और अपनी छोटी-सी गृहस्थी बसाई. दुर्गा सिंह गार्ड की नौकरी करने लगे और नौकरी करते हुए इलाज के लिए पैसे जोड़ने लगे.वो याद करते हैं, “दिल्ली की महंगाई में हम दोनों को अपना खर्च चलाना था, कुछ पैसे घर भेजने थे और इलाज के लिए पैसे बचाने भी थे. ये सब बहुत मुश्किल और तकलीफ़ देने वाला था. हफ़्ते में एक दिन की छुट्टी मिलती थी और वो भी अस्पतालों में बीतती थी.”

दुर्गा सिंह ने अस्पतालों में कितना वक़्त गुजारा है इसका पता उनके मुंह से अनायास निकलते ‘फ़ैलोपियन ट्यूब’, ‘यूट्रस’ और ‘सीमन’ जैसे शब्दों से लगाया जा सकता है. उन्होंने सफ़दरजंग से लेकर लेडी हार्डिंग तक न जाने कितने अस्पतालों की धूल फांकी, सालों इंतज़ार किया और आज भी इंतज़ार ही कर रहे हैं.उन्होंने कहा, “एक डॉक्टर ने हमें आईवीएफ़ ट्राई करने की सलाह दी है, लेकिन मैं अभी उस बारे में सोच नहीं पा रहा हूं क्योंकि वो काफ़ी खर्चीला है.”बच्चे की चाहत में वो अब तक 8-9 लाख रुपये खर्च कर चुके हैं.

इन सब के बीच वो एक बाबा के चक्कर में भी फंस गए थे.उन्होंने बताया, “बाबा ने मुझसे 20 हज़ार रुपये मांगे और कहा कि दो महीने के भीतर काम न होने पर पूरे पैसे वापस हो जाएंगे. मैंने उन्हें 20 हज़ार दिए और दो महीने तक हर वो पूजा पूरे विधि-विधान से करता रहा, जो उन्होंने बताई. जब कोई फ़ायदा नहीं हुआ तो मैंने अपने पैसे वापस मांगे. पहले तो उन्होंने मुझे टालने की कोशिश की, लेकिन जब मैं अपने दोस्त के साथ वहां जा धमका तो उन्हें पैसे लौटाने पड़े.”

दुर्गा सिंह याद करते हैं, “कई बार मैं थककर रोने लगता था. अब भी मैं और पूनम बहुत मायूस हो जाते हैं, लेकिन इस मायूसी में हम दोनों ही एक-दूसरे को संभालते हैं. हां, ये ज़रूर है कि हमारी ज़िंदगी में जो भी दुख या खालीपन है, उसका असर कभी हमारे आपसी रिश्ते पर नहीं पड़ा.”उनकी ये बात सुनकर पूनम के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कुराहट आ जाती है और वो कहती हैं, “ऐसा नहीं कि हमारे बीच झगड़े नहीं होते, लेकिन ये झगड़े कभी इसलिए नहीं हुए कि हमारा कोई बच्चा नहीं है. अपनी किस्मत के लिए हम एक-दूसरे को दोष नहीं देते.”

दुर्गा सिंह को कुछ लोगों ने इशारों-इशारों में दूसरी शादी करने की सलाह भी दी. उन्होंने बताया, “लोग मुझसे सीधे दूसरी शादी के बारे में नहीं कह पाए क्योंकि वो जानते हैं कि मैं ऐसा ऐसा कुछ कभी नहीं करूंगा. उल्टे उन पर ही भड़क जाऊंगा. मैं पूनम का दिल कभी नहीं दुखा सकता.”इसके जवाब में दुर्गा सिंह कहते हैं, “मेरे पीठ पीछे तो लोग कहते ही होंगे, इसमें कोई शक़ नहीं. एक बार मेरे सामने भी कहा है. हमारा अपने पड़ोसी से किसी बात पर झगड़ा हुआ था और तू-तू, मैं-मैं के बीच उन्होंने कहा- ऐसे हो तभी बाप नहीं बन पाए. मुझे ये सुनकर बहुत बुरा लगा. मेरी पत्नी तो रोने भी लगी थी.”

दुर्गा सिंह कहते हैं, “बहुत झल्लाहट भी होती है कई बार. दोस्त, रिश्तेदार, घरवाले सब पूछते रहते हैं. कभी फ़ोन पर तो कभी मिलने पर. और कुछ नया? कोई ख़ुशख़बरी? ये सब सुनकर थक गया हूं. अरे कोई ख़ुशख़बरी होगी तो ख़ुद बताऊंगा. लेकिन फिर सोचता हूं, इनकी क्या ग़लती. पूछ ही तो रहे हैं.”समाज में हमेशा मातृत्व की बात होती है, लेकिन पिता के दुलार का क्या? क्या एक मर्द को बच्चों की उतनी चाहत नहीं होती जितनी औरत को? दुर्गा सिंह जवाब देते हैं, “ऐसा नहीं है. मर्द खुलकर बोलते भले नहीं हैं, लेकिन उनके दिल में चाहत उतनी ही होती है. बाप न बन पाने का दर्द मुझसे पूछिए. मैंने अक्सर लोगों को कहते सुना है कि जिसके अपने बाल-बच्चे नहीं हैं वो भला दूसरों के बच्चों को क्या समझेगा, लेकिन मैंने दूसरों के बच्चों की पॉटी-सूसू तक साफ़ की है.?”उन्होंने कहा, “अगर आज मेरे घर में कोई बच्चा हो जाए तो इतनी धूमधाम से पार्टी दूंगा कि सबको पता लग जाएगा. लड़का हो या लड़की, मुझे फ़र्क नहीं पड़ता. बस एक बच्चा चाहिए.”उन्होंने बच्चे के लिए कई सपने भी सजा रखे हैं. जैसे, बच्चे को अच्छे स्कूल में पढ़ाएंगे और बड़े लोगों में बैठना-उठना सिखाएंगे और अच्छी नौकरी कराएंगे. वो भावुक होकर कहते हैं, “ग़रीबी की वजह से मेरे पिता मुझे पढ़ा नहीं पाए, लेकिन मैं अपने बच्चे को ज़रूर पढ़ाऊंगा. उसे वो सारी चीज़ें दूंगा, जो मुझे नहीं मिलीं.”

दुर्गा सिंह के लिए पिता बनना इतना ज़रूरी क्यों है ?उनका जवाब है, अपने जैसा कोई तो चाहिए. वो कहते हैं, “बच्चा होगा तो लगेगा कि मेरे पास कोई अपना है, जो मुझे अपना मानेगा. बच्चा न हुआ तो मेरे मरने के बाद मेरा नाम दुनिया से मिट जाएगा. कोई लड़का या लड़की होगी तो लोग कहेंगे कि ये दुर्गा सिंह के बच्चे हैं.”

लेकिन जिनके कोई बच्चे नहीं, उनकी भी तो ज़िंदगी है ? “हां, बिल्कुल है.” दुर्गा सिंह इससे इत्तेफ़ाक रखते हैं. उन्होंने कहा, “अगर बच्चा नहीं होगा तो भी हम दोनों जी ही लेंगे. लेकिन अगर हो जाएगा तो बहुत ख़ुशी-ख़ुशी जिएंगे. शायद हम कोई बच्चा गोद भी ले लें.”विदा लेते हुए दुर्गा सिंह धीमी आवाज़ में कहते हैं, “मैंने तो कभी किसी का बुरा नहीं किया, क्या पता ऊपर वाला पिघल ही जाए. आपको किसी अच्छे डॉक्टर का पता चले तो बताइएगा, हमने अब भी उम्मीद नहीं छोड़ी है.”

सिन्धुवासिनी बीबीसी हिंदी डॉट कॉम से साभार

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