सिटी पोस्ट लाइव : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सत्ता में आने के बाद जनता की समस्याओं से सीधे रूबरू होने के लिए जनता दरबार की शुरुवात की थी. ये शुरुवात केवल प्रतीकात्मक बनकर नहीं रह जाये, उन्होंने लगातार इसका आयोजन किया और कोरोना के संक्रमण काल से उबरने के बाद एकबार फिर से जनता के दरबार में हाजिर होने लगे हैं. लेकिन इस बीच पटना में कई जनता दरबार जेडीयू-बीजेपी दफ्तर में जनता दरबार जदयू और भाजपा दोनों के मंत्रियों ने रोटेशन के हिसाब से अपने-अपने दफ्तर में मूल रूप से पार्टी कार्यकर्ताओं की विभाग से जुड़ी समस्याओं को सुनने के लिए बैठना शुरू कर दिया है.
लेकिन मुख्यमंत्री के janta darbaar को छोड़कर किसी मंत्री के janta darbaar में लोग रूचि नहीं दिखा रहे हैं.पार्टी दफ्तरों में लगनेवाले जनता दरबार प्रतीकात्मक भर रह गये हैं. दरअसल, मुख्यमंत्री के जनता दरबार में मंत्री और अधिकारी मौजूद रहते हैं, लेकिन मंत्रियों के दरबार में कोई अधिकारी नहीं रहता. मंत्री को खुद फोन लगाकर अधिकारियों को निर्देश देना पड़ता है.अधिकारियों ने निर्देश का पालन किया या नहीं, निगरानी की कोई व्यवस्था नहीं है.मंत्री अधिकारियों को निर्देश देते तो जरुर हैं लेकिन कोई काम नहीं होता.उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद का भी जनता दरबार लगता है. वह भी फोन पर ही देखते हैं मामलों को. हम के जनता दरबार में जीतन राम मांझी भी मानते हैं कि अधिकारी उनके निर्देशों का ठीक से पालन नहीं करते.अब वो अधिकारियों को चिट्ठी लिखकर दबाव बनाने की तैयारी में हैं.
जाहिर है लोग किसी मंत्री नेता के janta darbaar में जाने की बजाय सीधे मुख्यमंत्री के janta darbaar में जाना चाहते हैं क्योंकि मुख्यमंत्री से सीधे बात करने का उन्हें मौका मिलता है.उनके सामने ही मुख्यमंत्री अधिकारीयों को जरुरी निर्देश देते हैं और उसी समय से अधिकारियों की एक टीम मोनिटरिंग में जुट जाती है. जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम में आए मामलों में क्या कार्रवाई हुई इसकी निगरानी के लिए सीएम डैशबोर्ड है. अधिकारियों की टीम देखती है कि जो मामले आए उन पर संबंधित महकमे ने किस तरह से काम किया, जबकि राजनीतिक दलों के दफ्तर में जो जनता दरबार हो रहे हैं, उसमें मौके पर निष्पादन के लिए मंत्री संबंधित अधिकारी को निर्देश तो जरूर दे रहे पर उनके परिणाम जल्द मालूम नहीं होते.
जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम में जो मामले आते हैं, उन्हें सीएम डैश बोर्ड पर डालने की व्यवस्था है. मुख्यमंत्री सचिवालय में इसके लिए अधिकारी हैं. सीएम डैश बोर्ड अलग-अलग विभाग के लिए आइकान बने हुए हैं. मुख्यमंत्री सचिवालय के तय अधिकारी को सीएम डैशबोर्ड के एक्सेस का अधिकार है. संबंधित महकमे की शिकायत डाले जाने के बाद उक्त विभाग के अधिकारी को एक तय अवधि में अपना अनुपालन रिपोर्ट उक्त डैश बोर्ड पर अपलोड करना है. इससे यह मालूम करने में सहूलियत होती है कि आवेदकों की गुहार पर किस तरह से कार्रवाई हुई. जाहिर है प्रॉपर मोनिटरिंग की वजह से अधिकारी जनता दरबार से निकले आदेश की अवहेलना नहीं कर पाते .