सिटी पोस्ट लाइव : बिहार में राज्यपाल कोटे से मनोनीत किए गए 12 विधान पार्षदों के मनोनयन को हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी है। ऐसे में अब बिहार सरकार के दो-दो मंत्रियों समेत जेडीयू के राष्ट्रीय परिषद के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इस मामले में 13 सितंबर को कोर्ट का फैसला आएगा।
12 विधान पार्षदों के मनोनयन को चुनौती देने वाली याचिका पर पटना हाईकोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई। सीनियर वकील बसंत चौधरी की याचिका पर चीफ जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एस कुमार की खंडपीठ ने इस मामले पर सुनवाई की। कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि मनोनीत किए गए विधान पार्षद को राजनीतिज्ञों को समाजसेवी माना जाए या नहीं? इस मामले पर अगली सुनवाई में 13 सितंबर को फैसला लिया जाएगा। ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा, अशोक चौधरी और जनक राम समेत कई बड़े नेताओं की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
याचिकाकर्ता के वकील बसंत चौधरी का कहना था कि इस तरह के मामले में भारत के संविधान के प्रावधानों के तहत साहित्य, कलाकार, वैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता व सहकारिता आंदोलन से जुड़े हुए विशिष्ट लोगों का मनोनयन हो सकता है। उन्होंने तर्क देते हुए कहा कि एक सामाजिक कार्यकर्ता को काम का अनुभव, व्यवहारिक ज्ञान और विशिष्ट होना चाहिए, लेकिन इन सब बातों को अनदेखा किया गया है।
बसंत चौधरी ने कोर्ट को बताया कि मनोनीत किए गए सदस्यों में कोई पार्टी का अधिकारी है, तो कोई कहीं का अध्यक्ष। जिन लोगों को मनोनीत किया गया है वे न तो साहित्य से जुड़े हैं नही वैज्ञानिक है और न कलाकार। यह संविधान के प्रविधानों का उल्लंघन है। ऐसा फैसला सभी मापदंडों को अनदेखा करते हुए लिया गया है। पिछ्ली सुनवाई में कोर्ट ने राज्य सरकार के महाधिवक्ता से पूछा था कि क्या मनोनीत किए गए एमएलसी में कोई राज्य के मंत्री पद पर है क्या?
आपको बता दें कि विधान पार्षद के रूप में जेडीयू और बीजेपी से अशोक चौधरी, जनक राम, जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा, डा. राम वचन राय, संजय कुमार सिंह, ललन कुमार सर्राफ, डा. राजेंद्र प्रसाद गुप्ता, संजय सिंह, देवेश कुमार, प्रमोद कुमार, घनश्याम ठाकुर और निवेदिता सिंह का राज्यपाल के कोटे से मनोनयन किया गया था।