सिटी पोस्ट लाइव : बिहार में प्रतिभा की कमी नहीं है. हर खेल में बिहार के लोग अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं. लेकिन कमी है तो सिर्फ यहां मूलभूत सुविधाओं की. जिसके कारण बिहार के लोग खेल जगत में ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाते. टोकियो ओलंपिक्स के समाप्त होने के बाद तेजस्वी यादव ने अपने दिल का दर्द बयां किया है. आखिर क्यों इतनी बड़ी आबादी वाले बिहार के बच्चे ओलंपिक्स जैसी बड़ी प्रतियोगिता में देश का प्रतिनिधित्व नहीं करते. इसे लेकर तेजस्वी ने फेसबुक पर दिल बात लिखी है. तेजस्वी लिखते हैं कि खेल जगत का सबसे बड़ा उत्सव टोकियो ओलंपिक्स समाप्त हो चुका है। पूरे ओलंपिक्स का बिहारवासियों ने पूरे देश के साथ आनन्द लिया। जीत पर खुशी मनाया, हार पर निराश हुए। पर एक बात ने हर बिहारीवासी को हृदय से ज़रूर कचोटा होगा। मुझे भी इस बात की टीस लंबे समय से रही है। वह बात है ओलंपिक्स में 13 करोड़ की आबादी वाले बिहार प्रदेश के एक भी खिलाड़ी का देश का इस विश्व स्तर के खेल मंच पर प्रतिनिधित्व नहीं करना। 2016 में रियो ओलंपिक्स के बाद भी मैंने अपने “दिल की बात- ओलंपिक्स, भारत और बिहार” शृंखला के तहत अपनी इस पीड़ा को ज़ाहिर किया था।
मेरी इस भावना को राजनीतिक चश्मे से ना देखा जाए। इस भाव को एक आम बिहारवासी, एक पूर्व खिलाड़ी और बिहार के एक खेलप्रेमी के रूप में देखा जाए। मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरी तरह बिहार के सभी पूर्व व वर्तमान खिलाड़ियों का बिहार का प्रतिनिधित्व करने का सपना रहा होगा। पर यहाँ खेल कूद से जुड़े विश्वस्तरीय आधारभूत संरचना, प्रशिक्षण सुविधाओं और सरकार की ओर से किसी भी रूप में प्रोत्साहन या सकारात्मक पहल के अभाव में बिहार की प्रतिभाएँ या तो कभी उड़ान ही भर नहीं पाती हैं या फिर दूसरे राज्यों में जाकर ही अपने खेल को निखारती हैं। जिन भी बिहारी मूल के खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है, वह उन्होंने दूसरे राज्यों से प्रशिक्षण प्राप्त कर, वहाँ का प्रतिनिधित्व कर के ही पाई है।
हाँ! यह बात भी सच है की किसी भी प्रदेश में खेलों और अच्छे खिलाड़ियों का होना अथवा नहीं होने की ज़िम्मेवारी राजनीति व सरकार का ही अंग है। यह बिहार के सभी राजनेताओं और नौकरशाहों के लिए एक विचारणीय विषय है। बिहार में खेल कूद को बढ़ावा देने के लिए बस खानापूर्ति ही की गयी है। आख़िर बार 1996 के क्रिकेट विश्व कप में ही बिहार में कोई अंतरराष्ट्रीय मैच हुआ था। बिहार में खेल कूद को बढ़ावा देने की कभी कोई ईमानदार कोशिश नहीं हो रही है। खेल कूद के क्षेत्र में उज्ज्वल भविष्य की राज्य में कोई संभावना ना देख अभिभावक भी बच्चों को खेलों के प्रति ज्यादा प्रोत्साहित नहीं करते। ना तो कभी ज़मीनी स्तर पर काम करते हुए प्रतिभा को निखारने का प्रयास किया गया, ना खेल कूद को प्रोत्साहन देने के लिए उचित धनराशि आवंटित की गई है और ना ही प्रतिभा निखारने के लिए आधारभूत संरचना का निर्माण किया गया। जो बात दिल को और अधिक कचोटती है वह है यथास्थिति को बदलने के प्रति उदासीनता।
हमने पूरी ईमानदारी से राज्य में खेल कूद के विकास की प्रतिबद्धता के साथ 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में एक “नई खेल नीति” को राजद के घोषणापत्र में शामिल किया था। एक पूर्व खिलाड़ी और युवा होने के नाते मेरी हार्दिक प्रबल इच्छा है कि राज्य में हमारी जब भी सरकार बने, एक समयबद्ध सीमा के अंदर पूरे दृढ़ निश्चय से खेल कूद का विकास, खेलों के लिए विश्वस्तरीय आधारभूत संरचना, खिलाड़ियों के लिए रहने, खाने-पीने व यात्रा करने की समुचित व्यवस्था, प्रोत्साहन राशि और अन्य सुविधाएँ सुनिश्चित करेंगे।
हम येन-केन-प्रकारेण सत्तासीन बिहार सरकार को धन्यवाद देते हैं कि कम से कम उन्होंने हमारे घोषणापत्र का अध्ययन कर उसमें उल्लेखित बिहार में खेल विश्वविद्यालय स्थापित करने की हमारी चिर परिचित माँग को हाल ही में स्वीकृति प्रदान की है। अब यह कब बनेगा, सरकार कितनी ईमानदारी से इससे राज्य में खेल के विकास को प्रतिबद्ध रहती है या इसके द्वारा भाई-भतीजावाद व क्षेत्रवाद कर अपने लोगों को वहाँ स्थापित करने या सरकारी फंड का दुरुपयोग करने का हथकंडा बनाती है, यह देखने वाली बात होगी?
यह ध्यान देने योग्य बात है कि मणिपुर, हरियाणा और पंजाब जैसे छोटे और कहीं ज्यादा कम आबादी वाले राज्य खेल कूद के मामले में बिहार से बहुत ही आगे है। हरियाणा और पंजाब में एक निर्धारित स्तर पर नाम कमाने पर सरकारी नौकरी दी जाती है । और अच्छा करने पर पदोन्नति भी दी जाती है। बिहार में स्पोर्ट्स कोटा के नाम पर नौकरी तो है, पर उससे सरकार के क़रीबी लोगों को ही जैसे तैसे लाभ पहुँचाया जाता है। मणिपुर, जो एक छोटा राज्य है, वह दिखाता है कि अगर खेल कूद को संस्कृति का हिस्सा बना दिया जाए तो प्रतिभा स्वयं आगे आने लगती है।
बिहार में प्रतिभाओं व प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की कोई कमी नहीं है। सरकार को हर संभव प्रयास कर जाति-धर्म से ऊपर उठकर बिहार में भी खेल कूद की संस्कृति का विकास करना होगा। इसे जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाना होगा। बिहार सरकार की विभिन्न योजनाओं और प्रयासों से इच्छुक प्रतिभाओं को यह संदेश देना चाहिए कि खेल में अपना जीवन झोंकने से किसी भी सूरत में वे नुकसान की स्थिति में नहीं रहेंगे। सिर्फ़ खेल और खिलाड़ी ही नहीं, कोचों के प्रशिक्षण के लिए भी व्यापक स्तर पर प्रयास होने चाहिए। प्रशिक्षकों की एक बड़ी सेना तैयार कर उनसे गाँव गाँव और स्कूल स्कूल जाकर टैलेंट स्काउट के रूप में छोटी उम्र में ही प्रतिभाओं को खोजने और उन्हें प्रशिक्षण दिलवाने की व्यवस्था की जानी चाहिए।
माता-पिता और शिक्षकों को भी जीवन में खेलकूद और स्वास्थ्य के महत्व को समझना होगा, आगे अपने बच्चों व विद्यार्थियों को इसे समझाना होगा। खेल कूद ना सिर्फ हमें शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ बनाते है, बल्कि चुनौतियो का सामना करना, तालमेल बिठाना, लक्ष्य साध कर मेहनत करना और एक दूसरे की मदद करते हुए आगे बढ़ना सिखाती है। व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए खेलो के महत्व को बिहारवासियों और व्यवस्था को समझना ही पड़ेगा।