सिटी पोस्ट लाइव, रांची: विश्व जनसंख्या दिवस पर आज जब देश के नीति निर्माता उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों में बढ़ती जनसंख्या से चिंतित है, वहीं झारखंड में जनजातीय समुदाय की आबादी में निरंतर आ रही गिरावट समाजशस्त्रियों के लिए चिंता का विषय बनकर सामने आया है। वर्ष 1951 की जनगणना के मुताबिक एकीकृत में झारखंड के हिस्से में रहने वाले आदिवासियों की जनसंख्या कुल आबादी में 35.8प्रतिशत थी, जो अब घटकर करीब 26 प्रतिशत के आसपास पहुंच गयी है। इस तरह से आजादी के इन सात दशकों में झारखंड में आदिवासियों की आबादी 9.27 फीसद घट गई। वहीं सबसे ज्यादा चिंताजनक स्थिति है कि आदिम जनाजातियों की संख्या अन्य जनजातीयों की अपेक्षा तेजी से कम हो रही है और कुछ आदिम जनजातियों के विलुप्त होने का खतरा मंडराने लगा है। रिपोर्ट के अनुसार आदिम जनजाति की संख्या 2001 में 3.87लाख थी, जो 2011 में 2.92लाख हो गयी है। दूसरी तरफ हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और अन्य की आबादी में बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी है।
टीएसी उपसमिति का किया गया था गठन
आदिवासियों की संख्या में आ रही कमी के के कारणों का पता लगाने के लिए पिछली सरकार में जनजातीय पराशर्मदातृ परिषद की ओर से एक उपसमिति का दौरा किया गया था। इस उपचुनाव ने संताल परगना ,कोल्हान और उत्तरी तथा दक्षिणी छोटानागपुर के विभिन्न जिलों का दौरा का जनसंख्या में आ रही कमी से संबंधित तथ्यों का संग्रहण भी किया गया, लेकिन इस बीच नयी सरकार गठन हो जाने के कारण उपसमिति की रिपोर्ट सामने नहीं आ पायी।
आदिवासियों की जनसंख्या में आने की मुख्य वजह
झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्य में जनजातीय समुदाय की आबादी में कमी आने का मुख्य वजह रोजगार की तलाश में बाहर गये हजारों आदिवासी परिवार को वापस नहीं लौटना और असम के चाय बागान, अंडमान-निकोबार, चीन और पाकिस्तान की सीमा पर सड़क निर्माण और अन्य परियोजनाओं में मजदूरी के लिए जाने के बाद वहीं बस जाने तथा बड़े शहरों में नौकरी करने के दौरान उन्हीं शहरों में बस जाना प्रमुख कारण माना जा रहा है। एक संभावना यह भी जतायी जा रही है कि खेती-बाड़ी के बाद बहुत से आदिवासी परिवार बाहर चले जाते हैं।
सामान्य तौर पर उनकी अनुपस्थिति में जनगणना होती है। आबादी के आंकड़े में इसका असर पड़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। वहीं अलग झारखंड राज्य गठन के बाद दो दशक में बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों से भी लोग यहां आये है, जबकि अलग राज्य गठन के पहले झारखंड के विभिन्न हिस्सों में स्थापित कई औद्योगिक इकाईयों, ऊर्जा परियोजनाओं और खनन परियोजनाओं में नौकरी करने के लिए बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों से भी लोग यहां आये, इसके कारण भी कुल आबादी में आदिवासियों की संख्या में कमी आने की बात सामने आती है।