सिटी पोस्ट लाइव : पिछले एक साल से बिहार सरकार का दिल का सबसे बड़ा अस्पताल इंदिरा गांधी हृदय रोग संस्थान खुद बेहाल है.यहाँ पर एक साल से बाईपास सर्जरी का काम ठप है क्योंकि, न तो सर्जरी के लिए डॉक्टरों की टीम है और न ही जरूरी उपकरण. आईजीआईएमएस में अभी 753 मरीजों की बाईपास, एंजियोप्लास्टी, एंजियोग्राफी, वाल्व रिप्लेस्मेंट, पेसमेकर लगवाने का काम पेंडिंग है. कोविड से पहले आईजीआईएमएस में रोज औसतन 2-3 एंजियोप्लास्टी, 6-7 एंजियोग्राफी और 2-3 मरीज को पेसमेकर लग जाता था. अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर इस अस्पताल के एक डॉक्टर कहते हैं-अगर टीम पूरी रहे और उपकरण मिल जाए तो हमलोग बाईपास सर्जरी के लिए तैयार हैं.
महीनों बाद मंगलवार को दो-तीन मरीजों का वाल्व रिप्लेस्मेंट हुआ है. कोविड से पहले महीना में कम-से-कम दो मरीजों की बाईपास सर्जरी व चार-पांच मरीजों का वाल्व रिप्लेस्मेंट हो जाता था. ओपीडी मरीजों की संख्या में भी 50 फीसदी की कमी आई है. पहले जहां ओपीडी में प्रतिदिन 250-300 मरीज आते थे, वहीं अभी 125-130 मरीज ही आ रहे हैं. हृदय रोग के इलाज के लिए भी कोविड से पहले की तुलना में अभी अस्पताल में 40%कम मरीज भर्ती हो रहे हैं. अभी यहां 90 मरीजों की एंजियोप्लास्टी, 15 की बाईपास सर्जरी पेंडिंग है.
इंदिरा गांधी हृदय रोग संस्थान में मरीजों को भर्ती करने से पहले उनकी एंटीजन किट से कोरोना जांच की जा रही है. ऑपरेशन से पहले कोरोना की आरटीपीसीआर जांच हो रही है. अस्पताल में कोरोना संक्रमित हृदय रोगियों के लिए भी अलग से 20 बेड की व्यवस्था की गई है.यहाँ भारती मरीजों के परिजनों के अनुसार हर दिन पेसमेकर के लिए दो दलाल उनसे मिलने आते हैं.दलाल कहते हैं, जब तक सप्लायर नहीं चाहेगा, मरीज को पेसमेकर नहीं लगेगा. पेसमेकर लगवाने के लिए मरीज से डॉक्टर नहीं, दलाल संपर्क करते हैं.मरीजों की शिकायत है कि यहां पर मरीजों से एक्स-रे व अन्य रिपोर्ट के लिए वार्ड ब्वॉय पैसे की मांग करते हैं.
आईजीआईसी के डायरेक्टर डॉ. सुनील कुमार ने बताया कि अस्पताल अभी एक ही कार्डियक सर्जन हैं. जबकि, बाईपास सर्जरी की प्रक्रिया में सर्जन की एक टीम की जरूरत पड़ती है. अस्पताल को अभी छह कार्डियक सर्जन की जरूरत है. संख्या पूरी होते ही यहां नियमित तौर पर बाइपास सर्जरी होने लगेगी. वहीं, पेसमेकर के लिए दलाली के आरोप पर उन्होंने कहा कि पेसमेकर बनाने वाली कंपनियों से हमारा करार है.वे कोई दलाल नहीं, कंपनी के एजेंट हैं. जिन मरीजों को पेसमेकर लगाना होता है, उनसे वे ही संपर्क करते .