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कृषि क़ानून को मोदी सरकार ने 18 महीने के लिए किया स्थगित.

किसानों के आगे झुक गई या नया दाँव मास्टर स्ट्रोक है, जानिये क्या कह रहे हैं राजनीतिक पंडित.

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सिटी पोस्ट लाइव : केंद्रीय कृषि मंत्रालय की ओर से जारी बयान के अनुसार .”कृषि सुधार क़ानूनों के क्रियान्वयन को एक से डेढ़ वर्ष के लिए स्थगित किया जा सकता है. इस दौरान किसान संगठन और सरकार के प्रतिनिधि किसान आंदोलन के मुद्दों पर विस्तार से विचार विमर्श कर किसी उचित समाधान पर पहुँच सकते हैं.”नए कृषि क़ानून को लागू करने को लेकर मोदी सरकार का ये नया दाँव एकदम है या फिर सरकार किसानों के आंदोलन की वजह से झुक गई ? सूत्रों के अनुसार राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) के हस्तक्षेप के बाद सरकार ने ये फैसला लिया है. कई जानकार इसे मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं. अगले कुछ महीनों में कई राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं. किसान आंदोलन की वजह से उन राज्यों के विधानसभा चुनाव पर असर पड़ सकता था, जो रिस्क सरकार, पार्टी और संघ नहीं लेना चाहता था.

दिल्ली सीमा पर नए कृषि क़ानून के विरोध में किसान पिछले दो महीने से प्रदर्शन कर रहे हैं. सरकार और किसान संगठनों के बीच 10 दौर की बातचीत हो चुकी है. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो चुकी है, कमेटी का गठन भी हो गया है. लेकिन अब तक कोई हल नहीं निकला.सरकार ने कहा कि ये फ़ैसला बताता है कि इन क़ानूनों को लेकर सरकार का मन खुला है. सरकार के इस फ़ैसले को ‘अपने स्टैंड से पीछे हट जाने के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.

ना’ ऐसा कुछ भी इस फ़ैसले में मुझे दिखाई नहीं देता. पहले भी सरकार ने कुछ निर्णय किए और उन निर्णयों के बारे में कुछ आपत्तियाँ रहीं और सरकार ने उन्हें वापस भी लिया. जैसे जेनेटिकली मोडिफाइड क्रॉप की बात हो, भूमि अधिग्रहण क़ानून हो, आरसीईपी में नए समझौते की बात हो – लेकिन सरकार ने जब देखा कि क़ानून से जुड़े लोगों को क़ानूनों से आपत्ति है, तो उसमें सरकार ने समय लेकर आपत्तियों को दूर करने का प्रयास पहले भी किया है.”इससे पहले कृषि से जुड़े भूमि अधिग्रहण क़ानून पर भी केंद्र सरकार पीछे हटी थी. तब संसद में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भूमि अधिग्रहण क़ानून का विरोध करते हुए केंद्र सरकार को ‘सूट-बूट की सरकार’ कहा था. इसके अलावा चाहे एनआरसी की बात हो या फिर नए श्रम क़ानून की, इन पर भी सरकार उतनी आक्रामक अभी नहीं दिख रही है.

सरकार के इस फ़ैसले से एक दिन पहले आरएसएस में नंबर दो की भूमिका रखने वाले भैय्याजी जोशी का बयान भी महत्वपूर्ण है. किसान आंदोलन को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में इंडियन एक्सप्रेस अखबार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था , “दोनों पक्षों को इस समस्या के हल के बारे में सोचना चाहिए. लंबे आंदोलन लाभकारी नहीं होते हैं. आंदोलन से किसी को समस्या नहीं होनी चाहिए. लेकिन बीच का रास्ता ज़रूर निकाला जाना चाहिए.”भैय्याजी जोशी का एक दिन पहले इस तरह का बयान देना और दूसरे ही दिन सरकार का स्टैंड बदलना महज एक संयोग हो सकता है.लेकिन सरकार के नए स्टैंड को उसी बीच के रास्ते की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. हालाँकि सरकार के नए प्रस्ताव पर किसान नेताओं का जवाब आना अभी बाक़ी है.

राजनीतिक पंडित इस फ़ैसले को मास्टर स्ट्रोक करार दे रहे हैं.सरकार अपने स्टैंड से बिल्कुल पीछे आई है या नहीं ये बाद में पता चलेगा.लेकिन  सरकार ने 18 महीने तक इस क़ानून को स्थगित कर कई राज्यों के होनेवाले चुनाव में किसानों के नाराजगी के खतरे को टाल दिया है. ये सरकार का मास्टर स्ट्रोक है अगर किसानों की मूल माँग को न  मानते हुए भी वो किसानों का आंदोलन ख़त्म करवा लेती है.बीजेपी के नेताओं का कहना है कि “पूरे आंदोलन को ख़त्म करने के दो ही तरीक़ा थे. शांतिपूर्ण तरीक़े से बातचीत से मुद्दे को सुलझाया जाए या फिर बल के प्रयोग से, जैसा इंदिरा गांधी के समय पर हमने देखा था. हमारी सरकार बातचीत से ही मुद्दे को सुलझाने की बात हमेशा से कहती आई है और आज भी वही बात कह रही है. बातचीत में जब गतिरोध आया, तो सरकार ने नए तरीक़े का समाधान खोजा. डेढ़ साल तक क़ानून को स्थगित करने का. हमने क़ानून को वापस तो आज भी नहीं लिया है.”

बीजेपी के नेताओं का कहना है कि देश के 11 करोड़ किसान हमारे साथ है, केवल कुलक हमारे साथ नहीं है. इन कुलक के पीछे ऐसी ताकतें हैं, जिनके लिंक बाहर की ताक़तों से है और भारत का माहौल अस्थिर करना चाहते हैं.वो आगे कहते हैं कि इन नए क़ानूनों के आधार पर जहाँ जहाँ चुनाव लड़ेगें, वहाँ हम जीत जाएँगे. इसमें कोई दो राय नहीं है.अब इंतज़ार है किसान नेताओं के प्रस्ताव का. क्या सरकार के प्रस्ताव के बाद आंदोलन ख़त्म होगा?

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