सिटी पोस्ट लाइव :बिहार में कोरोना के संक्रमण के नियंत्रण में आने का दावा सरकार भले कर रही है लेकिन सरकारी अस्पतालों की जो तस्वीर सामने आ रही है, वह हिला देनेवाली है. बिहार (Bihar) के नालंदा के अस्पताल में लापरवाही का मामला सामने आया है. पिछले वर्ष ही कोरोना काल में स्वास्थ्य विभाग के द्वारा सूबे के सभी स्वास्थ्य उपकेंद्र को ठीक कर ग्रामीण स्तर पर बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करने का निर्देश दिया गया था. बावजूद नालन्दा जिले में कई ऐसे स्वास्थ्य उपकेंद्र हैं जो जीर्ण शीर्ण अवस्था में चल रहे हैं. कहीं मकान गिर गया है तो कहीं भूसे के ढेर के बीच स्वास्थ्य उपकेंद्र चलाया जा रहा है.
बिहारशरीफ जिला मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर दूर कोरई पंचायत स्थित महानंदपूर का स्वास्थ्य उपकेंद्र का है. उपस्वास्थ्य केंद्र में कई कमरे हैं, पर सभी रख रखाव के अभाव में जीर्ण शीर्ण हालत में हैं. इस भवन में न तो दरवाजा है न ही खिड़की. इसके अलावे गंदगी का अंबार तो एक कमरे में पुआल व भूसे का ढेर रखा हुआ है.गाँव के लोगों का कहना है कि देखरेख के अभाव में यह स्वास्थ्य उपकेंद्र जीर्ण शीर्ण हो गया है. यहां न तो डॉक्टर आते हैं न ही कोई स्वास्थ्य कर्मी जिसके कारण इस पंचायत के करीब दर्जनों गांव के करीब 5 हजार की आबादी को इलाज के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है.ग्रामीणों का आरोप है कि कई बार डीएम, एसडीओ, मंत्री विधायक समेत कई लोगों से लिखित शिकायत की गई लेकिन किसी ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया. नालंदा के सिविल सर्जन डॉ. सुनील कुमार ने बताया कि पूर्व से ही इस स्थल को हेल्थ एंड बेलेन्स सेंटर में तब्दील करने की योजना थी, जिसके लिए सरकार को पत्र लिखा गया है. नालन्दा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह जिला है,अगर यहाँ के स्वास्थ्य उपकेंद्र का जब ये हाल है तो दुसरे जिलों के अस्पतालों की हालत क्या होगी, सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है.
इसी तरह की अस्पताल की बदहाली की एक तस्वीर भागलपुर जिले से आई है.जमीन पर बैठे जख्मी दो मरीज. दोनों मरीज के हाथों में लगा स्लाइन. दोनों ग्लूकोज की बोतल हाथ मे पकड़े हुए बैठे हैं.ये तस्वीर दरभंगा के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल DMCH के आपातकालीन सेवा के पास की है.दोनों मरीज को डॉक्टर की सलाह पर स्वास्थकर्मी ने स्लाइन तो लगा दिया और ग्लूकोज की बोतल उनके दो परिजनों के हाथों में थमाकर अपने कर्तव्य का पालन कर उन्हें उनके किस्मत पर छोड़ दिया. सरकारी दावों के बीच अस्पताल के व्यवस्था की पोल खोलती तस्वीर देख कोई भी सहज अंदाजा लगा सकता है कि इलाज़ कराने पहुंचे मरीज डॉक्टर के सहारे है या भगवान भरोसे ?