सिटी पोस्ट लाइव, रांची: झारखंड में पहले मंत्री और अब विधानसभा सदस्य के रूप में शपथ लेने वाले हफीजुल हसन पहले नेता बन गये है। मधुपुर विधानसभा उपचुनाव में निर्वाचित हफीजुल हसन को शनिवार को झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष रवींद्र नाथ महतो ने अपने कार्यालय कक्ष में विधानसभा सदस्यता की शपथ दिलायी। हफीजुल हसन ने विधानसभा के सदस्य के रूप में उर्दू भाषा में शपथ ली। विधानसभा अध्यक्ष ने नवनिर्वाचित सदस्य को बधाइयां देते हुए कहा कि वे राज्य सरकार में मंत्री के रूप में कार्यरत हैं और वे आगे भी वह जनहित में अच्छे कार्य करेंगे। शपथ कार्यक्रम में विधानसभा के सचिव महेंद्र प्रसाद, कार्मिक शाखा के संयुक्त सचिव मधुकर भारद्वाज और संबंधित पदाधिकारी और कुछ गणमान्य अतिथि उपस्थित थे। शपथ ग्रहण कार्यक्रम में कोरोना महामारी के प्रोटोकॉल पूरे तौर से ध्यान रखा गया।
सीएम से शिष्टाचार मुलाकात की
विधायक के रूप में शपथ लेने के बाद मंत्री हफीजुल अंसारी ने मुख्यमंत्री आवासीय कार्यालय जाकर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से मुलाकात की। मुख्यमंत्री से यह उनकी शिष्टाचार भेंट थी। मुख्यमंत्री ने मंत्री हफिजुल हसन अंसारी को मधुपुर विधानसभा उपचुनाव में मिली जीत के लिए उन्हें बधाई एवं शुभकामनाएं दीं। हसन अंसारी ने मुख्यमंत्री के प्रति आभार व्यक्त किया।
2006 में बिना विधायक हेमेंद्र प्रताप देहाती ने ली थी मंत्री पद की शपथ
साल 2006 में भानु प्रताप शाही के जेल जाने की वजह से उनके पिता हेमेंद्र प्रताप देहाती ने मंत्रीपद की शपथ ली थी। वे विधायक नहीं बने थे। इस बीच भानु प्रताप शाही जेल से बाहर आये तो हेमेंद्र ने उनके हक में कुर्सी छोड़ दी। उन्होंने विधायकी का चुनाव नहीं लड़ा। ऐसे में हफीजुल झारखंड के पहले ऐसे मंत्री बन गये हैं जिन्होंने पहले मंत्रीपद की शपथ ली और बाद में विधायकी की।
सीएम बनने के बाद अर्जुन मुंडा और बाबूलाल मरांडी विधायक बने
भारतीय जनता पार्टी के दो नेता बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा भी ऐसे शख्स हैं जिन्होंने बाद में विधायकी की शपथ ली। हालांकि इस मामले में दोनों मंत्री नहीं बल्कि मुख्यमंत्री बनाये गये थे। साल 2000 में झारखंड गठन के तुरंत बाद बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री बनाया गया। उस वक्त वो लोकसभा सांसद थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद वो विधायक बने। इस प्रकार अर्जुन मुंडा 2010 में सांसद रहते हुए मुख्यमंत्री बने। बाद में विधायकी जीती और शपथ ग्रहण किया। शिबू सोरेन भी बिना विधायक बने मुख्यमंत्री बने थे लेकिन तमाड़ विधानसभा सीट से चुनाव हार गये थे।