सिटी पोस्ट लाइव, रांची: प्रकृति पर्व सरहुल आज राज्य भर में कोरोना संक्रमण के गाइडलाइन के बीच सादगी और परंपरागति रीति रिवाज के साथ मनाया जा रहा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने करीब एक सप्ताह बाद मधुपुर उपचुनाव प्रचार से लौटने के बाद रांची एयरपोर्ट से सीधे रांची के सिरमटोली पहुंचे,जहां उन्होंने पूजा-अर्चना में हिस्सा लिया और सरना आदिवासी समाज के प्रबुद्ध जनों से मुलाकात की। सादगी पूर्ण तरीके से मनाये जा रहे सरहुल महापर्व पर सरना धर्मगुरुओं की ओर से घड़े के पानी को देखकर यह भविष्यवाणी की गयी कि इस बार मॉनसून में झारखंड में अच्दी बारिश होगी।
अच्छी बारिश का अनुमान
पारंपरिक विधि से पाहनों ने साल के वृक्ष की पूजा कर देश व राज्य के खुशहाली और कोरोना महामारी के समूल नाश की कामना की गई। एक दिन पूर्व सरना स्थलों में रखे गए दो घड़ों में पानी की स्थिति का आकलन करते हुए पहानों ने घोषणा की कि इस वर्ष भी बारिश अच्छी होगी और फसल भी अच्छी होगी। इसके लिए धर्मेससिंगबोंगा की प्रार्थना की गई। केंद्रीय सरना स्थल के पहान रोहित हंस ने पूजा की। नगड़ा टोली के चंदन हलधर पहान ने पूजा कराई। बताया गया है कि सरहुल पूजा के एक दिन पूर्व शाम में पूजा स्थल में दो घड़े में पानी ढक्कन से बंद करके रखी गयी थी। सुबह में पूजा के समय जब इस घड़े को देखा गया था तो सामने आया कि दोनों घड़ा पूरा पैरेलर था और पानी खाली नहीं दिखा। इसको देखकर यह भविष्यवाणी की गयी कि इस वर्ष बारिश अच्छी एवं सामान्य होगी। पाहन ने बताया कि किसान इस वर्ष खेती-बाड़ी की तैयारी में जुट जाएं।
लगातार दूसरी साल शोभायात्रा नहीं निकाली गयी
कोरोनावायरस के संक्रमण को रोकने के लिए करीब 53 साल के इतिहास में दूसरी बार सरहुल की शोभायात्रा नहीं निकाली गई। इसको लेकर सभी सरना एवं आदिवासी संगठन निर्णय ले चुके थे। सरहुल के पूर्व संध्या पर भी बुधवार को कहीं पर भी कोई सामूहिक कार्यक्रम नहीं हुआ और न ही कहीं पर सामूहिक नृत्य एवं संगीत का आयोजन किया गया।
साल व सखुआ वृक्ष की विशेष तौर पर की जाती है पूजा
आदिवासियों की प्रकृति प्रेम के प्रतीक के रूप में सरहुल पर्व पूरे राज्य में मनाया जाता है। यह आदिवासी समुदाय का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। चूंकि यह पर्व रबी की फसल कटने के साथ ही आरंभ होता है। इसलिए इसे नए वर्ष के आगमन के रूप में भी मनाया जाता है। इस पर्व में साल व सखुआ वृक्ष की विशेष तौर पर पूजा की जाती है। साथ ही यह भविष्वाणी की जाती है कि इस साल बारिश की स्थिति कैसी रहेगी।
पाहन ने चार मुर्गे-मुर्गी की दी बलि
पाहन ने चार मुर्गे-मुर्गी की बलि दी और अपने इष्ट देवी देवता सिंहबोंगा एवं जय धर्मेश से कोरोना वायरस से मुक्ति के लिए अराधना की। पाहन ने बताया कि सफेद मुर्गे की बलि सिंहबोंगा को दी गई। यह बलि सृष्टि की रक्षा के लिए दी गई। ग्राम देवता को खुश करने के लिए रंगुआ मुर्गी की बलि दी गई ताकि गांव-घर में शांति व्यवस्था बनी रहे। सुख समृद्धि आए। देश-देवशली की रक्षा के लिए माला मुर्गे की बलि दी गई। पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए लुपूंग मुर्गे की बलि दी गई। जबकि गांव-घर एवं झारखंड में अनिष्ट प्राणियों से रक्षा, भूत-प्रेत आदि से रक्षा के लिए काली मुर्गी की बलि दी गई।
सखुआ के नये फूल से पूजन
सरहुल पर्व प्रकृति के प्रति प्रेम, शांति, हरियाली ,खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक है। माना जाता है कि देश के साथ विदेशों में रहने वाले लाखों-करोड़ों आदिवासी समुदाय के लोग भी सरहुल पर्व मनाते हैं। झारखंड में इसे बसंत उत्सव के रूप में कई दिनों तक मनाया जाता है। सरहुल महोत्सव चैत महीने के तीसरे दिन चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है। यह नए साल की शुरुआत का प्रतीक है। इसमें साल पेड़ और प्राकृतिक तत्वों की पूजा होती है। इसे साल और सखुआ भी कहते हैं। सरहुल में मुख्य रूप से प्रकृति की पूजा होती है। इसमें साल के नए फूल से पूजन किया जाता है। सरहुल पर्व को मुंडा और खड़िया जनजाति के लोग बा, संथाल जनजाति के लोग बाहा कहते हैं। मान्यता है कि साल का फूल सभी फूलों में श्रेष्ठ है और यह प्रकृति का भी प्रतीक होता है।