बंगाल में दूसरे चरण में 80% मतदान, बंपर वोटिंग का क्या है इशारा?

City Post Live

सिटी पोस्ट लाइव : अब तक के दोनों चरणों में बंपर वोटिंग पश्चिम बंगाल में परिवर्तन का संकेत दे रहा है. 2011 की तरह बंपर वोटिंग ममता बनर्जी के लिए शुभ संकेत नहीं हैं. वोटर टर्न आउट कुछ-कुछ वैसा ही दिख रहा है जैसा 2011 में था. तब वोटरों ने परिवर्तन के लिए वोट डाला था. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में 30 विधानसभा सीटों पर छिटपुट हिंसा के बीच पहले चरण की तरह ही बंपर वोटिंग हुई है. चुनाव आयोग के मुताबिक, दूसरे चरण में 80 प्रतिशत से ज्यादा वोटरों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया.

 इसी चरण में उस नंदीग्राम में भी वोटिंग हुई जहां से कभी आंदोलन के जरिए ममता बनर्जी बंगाल के सियासी फलक पर एकदम से छा गई थीं और अब उन्हीं के करीबी सुवेंदु अधिकारी बीजेपी के टिकट से उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं. आखिर, बंपर वोटिंग का मतलब क्या है? क्या दीदी अपने ‘खेला होबे’ में कामयाब होती दिख रहीं हैं या फिर बीजेपी के ‘2 मई, दीदी गई’ पर जनता मुहर लगा रही है?

आम तौर पर बंपर वोटिंग को सत्ता के खिलाफ माना जाता है. पहले से ज्यादा वोटिंग होने को इस रूप में देखा जाता है कि सरकार से नाराज लोग परिवर्तन के लिए बड़ी तादाद में घरों से बाहर निकले हैं और मताधिकार का इस्तेमाल किया है. लेकिन हर बार ऐसा ही हो, यह जरूरी नहीं है. वोटिंग के आंकड़ों से किसी भी तरह का निष्कर्ष निकालना बहुत मुश्किल है. लेकिन बंगाल के पिछले चुनावों के टर्नआउट को देखें तो इस बार के आंकड़े कुछ हद तक हवा का रुख भांपने में मददगार हो सकते हैं.

पश्चिम बंगाल के लिए 80 प्रतिशत वोटिंग कोई बड़ी बात नहीं है. लेकिन येभी सच है कि  बंगाल में वोटिंग पर्सेंटेज में 2-4 प्रतिशत का उतार-चढ़ाव भी बड़ा उलटफेर कर देता है. 2011 के बंगाल विधानसभा चुनाव में जबरदस्त वोटिंग हुई थी. 84.7 प्रतिशत वोटरों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था. नतीजों के आने के साथ ही कभी लेफ्ट का अजेय किला समझे जाने वाले बंगाल ने सबको चौंका दिया. ममता बनर्जी लेफ्ट के इस गढ़ को ध्वस्त कर सत्ता में आईं.

2016 में जब चुनाव हुए तो 2011 की तुलना में कम वोटिंग हुई. कुल 81.9 प्रतिशत टर्नआउट रहा. ममता फिर सत्ता में आईं. 2019 के लोकसभा चुनाव में वोटर टर्नआउट 81.7 प्रतिशत रहा. इस बार के विधानसभा चुनाव में पहले चरण में 30 सीटों पर 84.6 प्रतिशत वोटिंग हुई है जो तकरीबन 2011 के बराबर है. गुरुवार को दूसरे चरण के लिए 30 सीटों पर हुई वोटिंग में टर्नआउट 80.43 प्रतिशत है. अंतिम आंकड़े अपडेट होने पर यह 84 से 85 प्रतिशत तक जा सकता है. पहले चरण में भी 27 मार्च की रात को चुनाव आयोग ने करीब 79 प्रतिशत वोटिंग की बात की थी लेकिन जब अगले दिन अंतिम आंकड़े आए तो पोल पर्सेंटेज बढ़कर 84.6 प्रतिशत पहुंच चुका था.

इस बार का चुनाव 2016 की तरह नहीं है. ममता बनर्जी की टीएमसी और बीजेपी में कड़ी टक्कर दिख रही है. यहां तक कि ममता बनर्जी की अपनी सीट नंदीग्राम में भी कांटे की टक्कर दिख रही है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दीदी को नंदीग्राम में वोटिंग से 5 दिन पहले से ही कैंप करना पड़ा. इस दौरान वह कहीं और प्रचार करने भी नहीं गईं.

ममता ने नंदीग्राम की गलियों में घूम-घूमकर प्रचार किया. बीजेपी की तरफ से खुद पर लगाए जा रहे ‘मुस्लिम तुष्टीकरण’ के आरोपों की धार कुंद करने के लिए मंदिर-मंदिर दर्शन किए. प्रचार खत्म होते-होते ‘गोत्र’ कार्ड भी खेलना पड़ा. सारी कवायद इसलिए कि वोटों का सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण न हो जाए. इसके अलावा, ममता बनर्जी सुवेंदु अधिकारी को गद्दार बताती रहीं और नंदीग्राम में उम्मीद के मुताबिक विकास नहीं होने का ठीकरा उन पर फोड़ती रहीं.

 गुरुवार को जब वोटिंग चल रही थी तब दोपहर तक वह अपने घर में रहीं. फिर अचानक एक बूथ पर पहुंचकर आरोप लगाने लगीं कि बाहरी लोग टीएमसी के वोटरों को वोट देने से रोक रहे हैं. वहीं से कभी गवर्नर को फोन घुमाया तो कभी चुनाव अधिकारियों को. वहीं थोड़ी दूर पर बीजेपी और टीएमसी के समर्थक आमने-सामने थे. ममता के चेहरे पर भी तनाव साफ देखा जा सकता था. इन सब चीजों से यह तो स्पष्ट है कि इस बार ममता के लिए डगर बहुत आसान नहीं है.

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