फिलहाल चारा घोटाले में सजायाफ्ता हैं, वो चुनाव नहीं लड़ सकते.अभी बीमार भी हैं.लेकिन सच ये है कि आज भी उनकी अहमियत मीडिया में थोड़ी भी कम नहीं हुई है.आज भी जिस मीडिया वाले को उनका का एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू मिल जाए ,तो उसके चैनल की टीआरपी बढ़ जायेगी .ये मीडिया का …..प्रेम नहीं बल्कि मीडिया की कमजोरी और मजबूरी बन गए हैं ………
लालू यादव अपने ठेठ देशी अंदाज की वजह से ज्यादा पढ़े लिखे लोगों को जाहिल,अनपढ़ और गंवार लग रहे थे .पब्लिकली नौकरशाहों को फटकार लगा देने के कारण नौकरशाही को एक रोड छाप गुंडा-मवाली तो कभी अपने “भूरे बाल साफ़ करो ” के नारे के कारण वो बुद्द्जिवियों को एक बेहद घटिया जातिवादी लगते थे.
लेकिन ये लालू की सच्चाई नहीं थी.ये सबकुछ लालू की एक्टिंग थी. ये उनकी एक्टिंग का कमाल था.राजनीति में आने से लेकर आजतक लालू के अंदाज में कोई बदलाव नहीं आया .लालू कितने कमाल के एक्टर हैं ,इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि लालू के इन सारे रूप (छवि ) खुद के बनाए हुए थे.अनजाने में नहीं बल्कि एक सोंची समझी रणनीति के तहत.लालू यादव उसी कॉलेज से आते हैं,जहाँ से ज्यादा पढ़े लिखे माने जानेवाले नीतीश कुमार और सुशिल कुमार मोदी.जी हाँ,सबने एक ही यूनिवर्सिटी (“पटना विश्विद्यालय ) से पढ़ाई की है.
जरा सोंचिये ,उस जमाने में गोपालगंज के एक निपट देहाती देशी अंदाज वाले लालू को प्रदेश के सबसे प्रतिष्ठित कॉलेज में दाखिला कैसे मिला होगा ? एक चपरासी का भाई का राज्य के सबसे प्रतिष्ठित कॉलेज में दाखिला ,क्या ये साबित करने के लिए काफी नहीं कि वह जैसा दीखता है ,वैसा है नहीं.खुद को अनपढ़,गंवार के रूप में प्रदर्शित करना लालू की एक सोंची समझी रणनीति का हिस्सा था.लालू को पता है कि हमारे समाज में अनपढ़,गंवार लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है और उनका नेता बनना है तो उनकी तरह खुद को दिखाना जरुरी था .इसलिए लालू ने सबसे पहले अपनी छवि एक अनपढ़ और गंवार की बनाई .एक्टिंग इतने कमाल का था कि इस एक्टिंग को आजतक कोई एक्टिंग समझ ही नहीं पाया.
लालू यादव जब सार्वजनिक रूप से नौकरशाहों को फटकार लगाते थे तो लोगों को एक असभ्य ,मवाली टाइप नेता लगते थे.लेकिन ये भी लालू यादव का एक किरदार ( एक्टिंग का कमाल ) था .दरअसल उन्हें पता था कि आम आदमी नौकरशाहों की गुंडागर्दी से कितना त्रस्त है .उसे तो वही अपना असली नेता लगेगा जो ईन नौकरशाहों को उसी तरह लतियायेगा ,उनकी इज्जत सरेआम निलाम करेगा,जैसे वो अबतक जनता का करते आये हैं.आम लोगों के कलेजे को ठंडक पहुंचाने की रणनीति के तहत ही लालू यादव हमेशा नौकरशाहों की पतलून उतारते रहे.उनसे खैनी बनवा उनको अपनी औकात बताते रह और जनता को रिझाते रहे.लेकिन आजतक कितने लोग समझ पाए कि ये भी लालू यादव का रियल चेहरा नहीं बल्कि एक्टिंग भर ही था.
“भूरा बाल साफ़ करो ” के नारे लगानेवाले लालू यादव ने अपने बीस साल के शासन में कितने भूमिहार,ब्राहमण और राजपूत और लाला जाति के लोगों को साफ़ करवाया .शायद ही कोई मिलेगा जो कहे कि लालू यादव ने जाति के कारण उसे प्रताड़ित किया ,अपमानित किया ,उसके खिलाफ खतरनाक शाजिष की.ये लालू की सबसे बड़ी सफल एक्टिंग थी. ऊपर से घोर जातिवादी दिखनेवाले लालू ने कभी जातिवाद के नाम कोई अत्याचार नहीं किया .दरअसल उच्च जातियों के खिलाफ नारे देकर लालू यादव ने एक तरफ उन्हें संदेश दिया कि अब नहीं चलेगा जातिवाद ,भेदभाव और दलितों पिछड़ों के अपमान का सिलसिला .दूसरी तरफ पिछड़ों दलितों को अहसास कराया कि उनके समाज में भी है कोई ऐसा जो अपने समाज के लोगों के अबतक पतलून उतारने वाले की पतलून गीली कर सकता है.
लालू यादव बहुतों को एक जोकर दिखे .लेकिन लालू ने कभी इसे दिल पर नहीं लिया .उन्हें पता था कि जोकर ही एक व्यक्ति ऐसा है ,जो किसी के घृणा का पात्र नहीं बनता .वो हमेशा हँसता रहता है और दूसरों को हंसाता रहता है.नायक और खलनायक नहीं बल्कि जोकर ही वह सख्श होता है जो अपना दुःख कभी बाहर नहीं आने देता .अपने दुःख से किसी को दुखी नहीं करता .अगर लालू ने एक जोकर के किरदार को सही ढंग से नहीं निभाया होता तो इतने झंझावत और संकट के बाद राजनीति में जिन्दा नहीं बचता .लालू ने असल जिंदगी में एक जोकर की असली अहमियत को न केवल समझा बल्कि उसेजिंदगी भर जमकर जीया भी .तभी आज लालू जिन्दा है ,संकट में भी मुस्कुराता नजर आता है ,अन्दर से रोते हुए भी बाहर से हँसते हुए दीखता है .लालू के इस किरदार को शेखर सुमन और राजीव श्रीवास्तव जैसे कुछ लोगों ने समझा ,परखा और बन गए देश स्तर के जोकर .लालू की मिमिक्री कर खूब हंसा ,लोगों खूब हंसाया और खूब कमाया भी .
लालू यादव के इसी अंदाज ने लालू को लालू से लालू प्रसाद यादव बना दिया .लालू तो असल जिन्दगी में एक्टिंग करते रहे लेकिन उनकी एक्टिंग की एक्टिंग करते करते कितने फिल्म स्टार गुजर गए .लालू यादव हमेशा टीवी पर तो दिखे लेकिन किसी वातानुकूलित स्टूडियो में बैठे नहीं बल्कि तबेले में भैस दुहते , खेतों में शब्जी उगाते या भैस की पूँछ पकड़कर साक्षात्कार देते नजर आये.इंटरव्यू लेनेवाला अंगरेजी चैनल का हो या हिन्दी या भोजपुरी ,लालू का साक्षात्कार देने का अंदाज हमेशा अपना रहा .ठेठ देशज.
फिलहाल चारा घोटाले में सजायाफ्ता हैं, वो चुनाव नहीं लड़ सकते.अभी बीमार भी हैं.लेकिन सच ये है कि आज भी उनकी अहमियत मीडिया में थोड़ी भी कम नहीं हुई है.लालू ने मीडिया को कुछ दिया नहीं,लेकिन मीडिया में उन्हें सबसे ज्यादा स्पेस हमेशा मिला .सबकी इज्जत उतारी लेकिन फिर भी किसी के घृणा का पात्र नहीं बने . आज भी जिस मीडिया वाले को लालू एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू दे दें ,तो उसके चैनल की टीआरपी बढ़ जाये.ये मीडिया का लालू प्रेम नहीं बल्कि लालू का मीडिया प्रेम है .प्रेम -घृणा सबका घालमेल हैं लालू यादव. मीडिया लालू की कमजोरी नहीं लालू मीडिया की कमजोरी और मजबूरी बन गए हैं .लालू यादव ने जितना बढ़िया से मीडिया का इस्तेमाल किया खुद मीडिया को समझ में नहीं आया.मीडिया को लगा वो लालू को छक्का रहा है लेकिन लालू यादव हमेशा मीडिया को छकाते रहे.
श्रीकांत प्रत्यूष