सिटी पोस्ट लाइव : भारत में कोविड-19 से बचाव के लिए टीकाकरण अभियान जारी है. वैक्सीन को लेकर अफवाह भी फैलाने की कोशिश जारी है. लेकिन वैक्सीन से आपको डराने की जरुरत नहीं है क्योंकि वैक्सीन के लिए पहले लैब में सेफ्टी ट्रायल शुरू किए जाते हैं, जिसके तहत कोशिकाओं और जानवरों पर परीक्षण और टेस्ट किए जाते हैं. इसके बाद इंसानों पर अध्ययन होते हैं. सिद्धांत ये है कि छोटे स्तर पर शुरू करो और परीक्षण के अगले स्तर पर तभी जाओ जब सुरक्षा को लेकर कोई चिंताएं ना रहें.
हालांकि भारत की स्वदेशी कोवैक्सीन के डेटा की कमी को लेकर शुरू में चिंताएं जताई गई थीं, लेकिन इस वैक्सीन को बनाने वाले भारत बायोटेक के अध्यक्ष डॉ. एला ने कहा कि 26,000 में से लगभग 24,000 वॉलंटियर्स तीसरे चरण के परीक्षण में भाग ले चुके हैं, और फरवरी तक वैक्सीन की एफिकेसी यानी वैक्सीन कितनी प्रभावी है, उसका डेटा उपलब्ध होगा.
वैक्सीन आपको कोई बीमारी नहीं देती. बल्कि आपके शरीर के इम्यून सिस्टम को उस संक्रमण की पहचान करना और उससे लड़ना सिखाती है, जिसके ख़िलाफ़ सुरक्षा देने के लिए उस वैक्सीन को तैयार किया गया है.वैक्सीन के बाद कुछ लोगों को हल्के लक्षण झेलने पड़ सकते हैं. ये कोई बीमारी नहीं होती, बल्कि वैक्सीन के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया होती है.10 में से एक व्यक्ति को जो सामान्य रिएक्शन हो सकता है और आम तौर पर कुछ दिन में ठीक हो जाता है, जैसे – बांह में दर्द होना, सरदर्द या बुख़ार होना, ठंड लगना, थकान होना, बीमार और कमज़ोर महसूस करना, सिर चकराना, मांसपेशियों में दर्द महसूस होना.
भारत में किसी वैक्सीन को तभी मंज़ूरी मिलती है, जब तथ्यों के आधार पर ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया (डीसीजीआई) ये फ़ैसला करता है कि वैक्सीन इस्तेमाल के लिए सुरक्षित और असरदार है.इसी तरह अन्य देशों में भी नियामक होते हैं जो वैक्सीन के इस्तेमाल को मंज़ूरी देते हैं. जैसे ब्रिटेन में एमएचआरए की सहमति के बाद किसी वैक्सीन को मंज़ूरी मिलती है.मंज़ूरी के बाद भी वैक्सीन के असर पर नज़र रखी जाती है, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि आगे इसका कोई दुष्प्रभाव या दीर्घकालिक जोखिम नहीं है. इसके बाद किन लोगों को पहले वैक्सीन दी जानी है, ये सरकारें तय करती हैं.
फाइज़र-बायोएनटेक की वैक्सीन (और मॉडर्ना) इम्यून रिस्पॉन्स के लिए कुछ आनुवंशिक कोड का इस्तेमाल करती है और इसे mRNA वैक्सीन कहा जाता है.ये मानव कोशिकाओं में बदलाव नहीं करता है, बल्कि शरीर को कोविड के ख़िलाफ़ इम्यूनिटी बनाने का निर्देश देता है.ऑक्सफ़र्ड-एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन में एक ऐसे वायरस का उपयोग किया जाता है, जिससे कोई नुक़सान नहीं होता और जो कोविड वायरस की तरह ही दिखता है.वैक्सीन में कभी-कभी एल्युमिनियम जैसे अन्य तत्व होते हैं, जो वैक्सीन को स्थिर या अधिक प्रभावी बनाते हैं.
जिन लोगों को फाइज़र-बायोएनटेक वैक्सीन दी गई उनमें से कुछ कम लोगों में गंभीर एलर्जिक रिएक्शन देखने को मिले हैं. उनका कहना है कि जिन लोगों को इस वैक्सीन में मौजूद किसी सामग्री से एलर्जिक रिएक्शन की हिस्ट्री रही है, उन्हें एहतियात के तौर पर अभी ये वैक्सीन नहीं लेनी चाहिए.ये सावधानी भी रखनी चाहिए कि सोशल मीडिया के ज़रिए एंटी-वैक्सीन कहानियां फैलाई जा रही हैं. ये पोस्ट किसी वैज्ञानिक सलाह पर आधारित नहीं है (या इनमें कई तथ्य ग़लत हैं).
अगर किसी को पहले कोरोना संक्रमण हो चुका है तो भी उन्हें वैक्सीन दी जा सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि प्राकृतिक इम्यूनिटी ज़्यादा वक़्त तक नहीं रह सकती और वैक्सीन से ज़्यादा सुरक्षा मिल सकती है.कहा जाता है कि जिन लोगों को “लॉन्ग” कोविड रहा है उन्हें भी वैक्सीन देना कोई चिंता की बात नहीं है. लेकिन जो लोग अभी वायरस से संक्रमित है, उन्हें ठीक होने के बाद ही वैक्सीन दी जानी चाहिए.
कुछ वैक्सीन, जैसे शिगल्स (एक तरह का इन्फेक्शन) की वैक्सीन और बच्चों के नेज़ल फ्लू की वैक्सीन में सूअर की चर्बी होती है.फाइज़र, मॉडर्ना और एस्ट्राज़ेनेका की कोविड वैक्सीन में सूअर की चर्बी या कोई और पशु उत्पाद नहीं होता है. ब्रिटिश इस्लामिक मेडिकल एसोसिएशन का कहना है कि इसमें नगण्य मात्रा में एल्कोॉहल है – जो ब्रेड में इस्तेमाल होने वाली मात्रासे ज़्यादा नहीं है.
इस बात के वैज्ञानिक सबूत हैं कि टीकाकरण गंभीर संक्रमणों से सबसे अच्छा बचाव है. कोविड-19 वैक्सीन लोगों को बहुत बीमार होने से बचा सकता है. हालांकि ये स्पष्ट नहीं है कि वैक्सीन लोगों को कोविड-19 फैलाने से रोकने के मामले में कितनी सुरक्षा देती है. अगर वैक्सीन ये अच्छे से कर पाती हैं तो पर्याप्त लोगों को वैक्सीन लगाकर बीमारी को रोका जा सकता है.