सिटी पोस्ट लाइव : बिहार विधासभा चुनाव को लेकर यहाँ के दो बड़े युवा नेताओं ने अपने राजनैतिक विरासत के लिए चुनावी तैयारी तेज कर दिया है। आपको बता दें की कोरोना महामारी के बीच बिहार विधान सभा चुनाव 2020 के पहले चरण का मतदान 28 अक्टूबर को होना है। 1 अक्टूबर को पहले चरण के लिए नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया जाएगा। लेकिन महागठबंधन हो या एनडीए दोनों गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर अभी भी माथापच्ची जारी है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अगर लालू प्रसाद यादव जेल से बाहर होते या रामविलास पासवान स्वस्थ होते तो यह स्थिति बनती ?
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में बिहार की तीन राजनीतिक दल ऐसे हैं जिम में अभी भी उहापोह की स्थिति बनी हुई है। बात करें उपेंद्र कुशवाहा के RLSP की या फिर रामविलास पासवान की पार्टी LJP प्रमुख चिराग पासवान की। एक और जहां उपेंद्र कुशवाहा ने महागठबंधन छोड़ दिया है, तो चिराग पासवान ने अभी तक एनडीए पर प्रेशर बना रखा है। रही बात नेता प्रतिपक्ष लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव की तो उनके नेतृत्व में चल रहे आरजेडी के कई विधायक जेडीयू में शामिल हो चुके हैं। बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और पहले चरण की 71 सीटों के लिए नामांकन का दौर भी एक अक्टूबर से शुरू हो रहा है। इसके बावजूद एनडीए में सीट शेयरिंग को लेकर अब भी जद्दोजहद कायम है। बताया जा रहा है कि बीजेपी की ओर से एलजेपी को 27 विधानसभा और 2 विधान परिषद की सीट का लास्ट आफर दिया गया है। लेकिन एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान ने 42 सीटों की दावेदारी की जिद पर अड़े है। इसके अलावा एलजेपी की ओर से जो दो फर्मूला दिया गया है उसमें चिराग पासवान को बिहार का उपमुख्यमंत्री बनाने की मांग भी शामिल है।
चिराग पासवान ने बीजेपी को दिया सीट बंटवारे का दो फर्मूला
अगर चिराग पासवान एनडीए से बाहर होते हैं तो उनके सामने पिता रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए और भी बड़ी चुनौती का सामना करना होगा। सूत्र के अनुसार एलजेपी प्रमुख ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के सामने दो और फर्मूला रखा है। पहले फर्मूले के तहत एलजेपी ने 33 विधानसभा की सीट के साथ बिहार में राज्यपाल कोटे से मनोनीत होने वाले दो एमएलसी की सीट और उत्तर प्रदेश से राज्यसभा की एक सीट दी जाए। दूसरा यह कि अगर उन्हे राज्यसभी की सीट नही भी दी जाती है तो बिहार में एनडीए का सरकार बनने पर बीजेपी के साथ चिराग पासवान को भी बिहार का उपमुख्यमंत्री बनाया जाए। अब यह देखना है कि क्या वास्तव में रामविलास पासवान के लाल चिराग पासवान उनके नाम को रौशन कर पाते हैं या नहीं।
क्या लालू की विरासत को संभाल नही पा रहें हैं तेजस्वी
आरजेडी में लगातार हो रहे बगावत और कई विधायकों का पार्टी छोड़कर जदयू का दामन थामने से, अब यह सवाल उठने लगा है कि, क्या तेजस्वी यादव अपने पिता लालू यादव के विरासत को संभालने में असफल साबित हो रहे हैं। गौरतलब है कि लालू प्रसाद यादव जो बिहार के तीन बार मुख्यमंत्री रहने के साथ-साथ राज्य और केंद्र सरकार में किंग मेकर की भूमिका भी निभा चुके हैं, भले ही आज भी आरजेडी सुप्रीमो के तौर पर मौजूद हों। बावजूद इसके आज उनकी पार्टी की हालत ऐसी हो गई है कि, सहयोगी दल गठबंधन छोड़ जा रहे हैं तो, उनके विधायक ही तेजस्वी यादव के नेतृत्व से नाराज़ होकर दूसरे दलों की ओर रुख कर रहे हैं।
क्या तेजस्वी यादव के नेतृत्व की वजह से है आरजेडी में बगावत
आरजेडी के सूत्र बताते हैं कि विधानसभा चुनाव के पहले अगर आरजेडी में और भी विधायक पार्टी को छोड़ते हैं तो ऐसी स्थिति ने पार्टी और भी कमजोर हो जाएगी। सूत्र के द्वारा यह भी बताया गया कि पार्टी की ऐसी स्थिति का कारण इसलिए है कि, लालू यादव के पुराने सहयोगियों के सलाह को दरकिनार कर तेजस्वी यादव खुद बड़े फैसले ले रहे हैं। बता दें कि चुनाव की घोषणा होने के पहले आरजेडी के कई विधायक जेडीयू में शामिल हो चुके हैं। इसके बाद लालू के बेहद करीबी और पार्टी को स्थापना काल से सींचने वाले दिवंगत रघुवंश प्रसाद सिंह ने भी अपमानित होने के बाद आरजेडी के प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था।
क्या जेनरेशन गैप की वजह से आरजेडी में फूट रहे बगावत के सुर
इसमें कोई शक नहीं कि 1990 के आरजेडी और 2020 के आरजेडी में काफी अंतर आ चुका है। दरअसल यह अंतर जेनरेशन गैप का है। 1990 से 2005 तक लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक स्थिति और वर्तमान में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में चल रहे आरजेडी के अंदर राजनीतिक पीढ़ी का एक बड़ा अंतर देखने को मिलता है। सूत्र के अनुसार तेजस्वी यादव पुरानी पीढ़ी को दरकिनार कर अपनी टीम बनाना चाहते हैं। यही वजह है कि लालू प्रसाद यादव के साथ रहने वाले वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी की जा रही है। दिवंगत रघुवंश प्रसाद सिंह के बाद 30 साल तक लालू यादव के साथ रहे आरजेडी नेता सतीश गुप्ता ने भी नेतृत्व से नाराज होकर पार्टी छोड़ दी है। बताया यह भी जा रहा है कि शिवानंद तिवारी भी इन दिनों तेजस्वी के नेतृत्व से खफा है।
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