सिटी पोस्ट लाइव : वर्ष 2005 के विधान सभा चुनाव की तर्ज पर चिराग पासवान नीतीश कुमार को शिकस्त देना चाहते हैं.बिहार की राजनीति के लिए वर्ष 2005 का चुनावी साल बहुत अहम् रहा क्योंकि एक साल में दो बार चुनाव हुए. 15 साल के लालू यादव के शासन के बाद बिहार में NDA की सरकार बनी. एक साल में दो बार हुए विधानसभा चुनाव में बिहार में सुशासन एवं विकास राजनीति का मुख्य मुद्दा बना.: सत्ता की कमान नीतीश कुमार के हाथ में आई.बिहार में 243 विधानसभा सीट के लिए फरवरी 2005 में हुए चुनाव में किसी दल को सरकार बनाने के लिए पर्याप्त बहुमत नहीं मिली.
गठबंधन की सरकार बनाने को बेताब RJD को इस बार सत्ता की चाभी नहीं मिली. ऐसे में फिर चुनाव में जाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं था. फिर अक्टूबर 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में JDU और BJP गठबंधन को भारी सफलता मिली. फरवरी में जहां RJD के सत्ता में पुन: वापसी के कयास लगाए जा रहे थे वहीं आठ महीने के अंतराल पर हुए दोबारा चुनाव में बिहार की राजनीतिक परिस्थिति पूरी तरह बदल गयी. फरवरी में हुए चुनाव में RJD को जहां 75 सीटें मिली थी वहीं अक्टूबर में यह घटकर 54 हो गयी.JDU को 55 की जगह 88 और बीजेपी को 37 के स्थान पर 55 सीटें मिली. इसी प्रकार कांग्रेस को 10 के स्थान पर नौ तो लोक जनशक्ति पार्टी को 29 की जगह मात्र 10 सीटें प्राप्त हुई. सत्ता का जो समीकरण फरवरी में उलझा हुआ था वह अक्टूबर में पूरी तरह स्पष्ट हो गया.
इस चुनाव में कांग्रेस का गठजोड़ RJD और LJP दोनों के साथ था लेकिन LJP का RJD के साथ गठजोड़ नहीं था.LJP ने कांग्रेस के साथ गठजोड़ कर RJD के खिलाफ उम्मीदवार उतार कर RJD का बैंड बजा दिया था.इसबार के चुनाव में चिराग पासवान कुछ ऐसा ही करना चाहते हैं.वो BJP के साथ तो गठजोड़ चाहते हैं दूसरी तरफ JDU के खिलाफ उम्मीदवार देकर नीतीश कुमार को कमजोर करना चाहते हैं ठीक उसी तरह से जिस तरह से लालू यादव को किया था.मतलब साफ़ है सबसे ज्यादा फायदे में BJP रहेगी क्योंकि उसका गठजोड़ तीनों दलों के साथ होगा लेकिन JDU का गठजोड़ एलजेपी के साथ नहीं होगा.