सिटी पोस्ट लाइव : राजनीति बिल्कुल चेस खेल की तरह है. एक चाल गलत हुई नहीं कि शह और मात. ऐसा इसलिए क्योंकि इनदिनों बिहार में विधानसभा की तैयारी जोरों पर है. किसकी तैयारी सबसे ज्यादा मजबूत है ये कह पाना थोड़ी जल्दबाजी होगी. चुनाव आयोग के गाइडलाइन जारी होने से पहले तक राजनीतिक पार्टियों में उठापटक शुरू हो चुकी है. इस दल के नेता उस दल में, उस दल के नेता इस दल में. वहीं दलितों के सबसे बड़े नेता कहे जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री और हम पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतनराम मांझी महागठबंधन से कॉर्डिनेशन कमेटी की मांग करते-करते अलविदा हो लिए. उन्हें महागठबंधन ने बिल्कुल भाव नहीं दिया. जिसके बाद उन्होंने गठबंधन धर्म नहीं निभाने का आरोप लगाकर बाहर हो लिए.
लेकिन अब बड़ा सवाल उनके लिए ये है कि अगला चाल वो क्या चलेंगे. उन्होंने पार्टी में शामिल करने के लिए कई डाल खड़े हैं. ऑफर पर ऑफर उन्हें दिया जा रहा है. न सिर्फ अभी बल्कि लोकसभा चुनाव से ही, जब मांझी ने कॉर्डिनेशन कमेटी बनाने का मुद्दा उठाया था. सबसे पहले जहां जाप के राष्ट्रीय अध्यक्ष पप्पू यादव उनसे मिलकर अपने साथ मिलाने की बात कर चुके हैं. तो वहीं हम पार्टी असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के साथ भी बैठक कर चुके हैं. इतना ही नहीं बिहार में यशवंत सिन्हा की अगुवाई में बने तीसरे मोर्चे की ओर से भी उन्हें ऑफर है. हालांकि वहां सीएम की कुर्सी नहीं मिलेगी क्योंकि उसके लिए पूर्व जदयू नेता नरेंद्र सिंह सेलेक्ट किए जा चुके हैं.
इस बीच जो सबसे ज्यादा चर्चाओं का बाजार गर्म है वो मांझी के फिर से नीतीश प्रेम. पहले जहां चर्चा थी कि मांझी की पार्टी हम का विलय जदयू के साथ हो सकता है लेकिन इसके बारे में पार्टी ने महागठबंधन से संबंध तोड़ने के दौरान ही साफ़ कर दिया था कि किसी भी कीमत पर जदयू में विलय नहीं होगा. लेकिन जदयू में जाने के बारे में वे ताल गए. अब बड़ा सवाल ये है कि क्या मांझी जदयू यानि NDA में दुबारा से शामिल होंगे. या वे असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम, पप्पू यादव और यशवंत सिन्हा के साथ जाएंगे. खैर जीतनराम मांझी मंझे हुए और पुराने नेता हैं. वे इतनी जल्दी चाल नहीं चलने वाले. सही वक्त और सही समय पर वे शह और मात देने में माहिर हैं.
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