सिटी पोस्ट लाइवः महागठबधन में कलह तेज हो गयी है। अब सीटों को लेकर आरजेडी और कांग्रेस आपस में भिड़ गयी है। बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अनिल शर्मा ने अपने बयानों से बवाल बढ़ा दिया है। अनिल शर्मा ने पूरा हिसाब-किताब समझाया है कि कब कब कांग्रेस ने आरजेडी की मदद की है और बदले में आरजेडी नेे धोखा दिया है। अनिल शर्मा ने लिखा है.@INCIndia @RahulGandhi @INCBihar विगत दिनों के मेंरे ट्वीट को आधार बनाकर मीडिया में मुझे काँग्रेस-राजद गठबंधन के विरोधी के रूप में प्रस्तुत किया गया है। सच है कि नीतिश सरकार को सत्ताच्युत करने के लिए मैं राजद सहित बामपंथी दलों को भी महागठवन्धन में शामिल करने का पक्षधर हूँ।
हाँ यह जरूर सच है कि काँग्रेस के नेतृत्व सहित हम सभी काँग्रेस जन महागठवन्धन में सम्मानजनक स्थान और सीटों की न्यायसंगत हिस्सेदारी चाहते हैं।काँग्रेस पार्टी एन०डी०ए०को सत्ता से बाहर करने के लिए राजद सहित अन्य क्षेत्रिय दलों का ईमानदारी से साथ देती रही है।किन्तु पूर्व के अनुभवों के आधार पर मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि बिहार में राजद ने काँग्रेस का साथ देने में काँग्रेस जैसी ईमानदारी नहीं बरती है।काँग्रेस और राजद के गठबंधन की सफर1998ई०से शुरू हुआ है और उस समय काँग्रेस गठबंधन में 21सीटों पर चुनाव लड़ी थी।वाजपेयी की केन्द्र सरकार ने 1999 में राबड़ी देवी की सरकार को बर्खास्त कर बिहार में जब राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया था तो उस समय काँग्रेस पार्टी ने ही राज्य सभा में राष्ट्रपति शासन लगाने के प्रस्ताव का विरोध कर फिर से राबड़ी देवी की सरकार को बहाल कराने में मदद किया था।किन्तु राबड़ी देवी सरकार को बहाल कराने के उपकार के बाबजूद सोनिया गाँधी जी के नेतृत्व में 1999 में होने बाले लोकसभा चुनाव में राजद ने काँग्रेस की सीटें 21 से घटाकर 16 कर दिया। विगत 2000ई०के विधान सभा चुनाव में काँग्रेस से गठबंधन तोड़कर चुनाव लड़ने के राजद को बहुमत नहीं मिला.
ऐसी परिस्थिति में फिर काँग्रेस के 23 विधायकों के समर्थन से श्रीमती राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनी।किन्तु एक फिर काँग्रेस के उपकार का अच्छा सिला देते हुए राजद ने 2004 के लोकसभा चुनाव में 16 सीटों को घटाकर मात्र 4 सीट पर सीमित कर दिया.इतना ही नहीं 2009 के लोकसभा चुनाव में तो राजद ने हद करते हुए काँग्रेस की जीती हुई वर्तमान 3सीटों को छोड़कर एक भी सीट देने से इनकार कर काँग्रेस को अकेले चुनाव लड़ने के लिए बाध्य कर दिया।2009 का लोकसभा चुनाव राजद के लोक जनशक्ति पार्टी के साथ गठबंधन में लड़ी और काँग्रेस अकेले काँग्रेस के अकेले लड़ने पर 2009 के चुनाव में 2 सीटें मिली जबकि लोजपा के गठबंधन में लड़ने के बाबजूद राजद की 22सीटें घटकर मात्र 4 रह गयी।2009 की हार के बाद राजद नेतृत्व को काँग्रेस की अहमियत का अहसास हुआ और राजद ने 2014 के लोक सभा चुनाव में काँग्रेस को 12 सीट दिया राजद नेतृत्व को अच्छी तरह से पता है कि सन 2000,2005(फरवरी)एवं 2010 का विधान सभा चुनाव और 2009 का लोकसभा चुनाव काँग्रेस से गठबंधन तोड़कर लड़ने पर काँग्रेस पार्टी से ज्यादा नुकसान राष्ट्रीय जनता दल को उठाना पड़ा है.किन्तु एक बार फिर राजद ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 12 सीटों को घटाकर 9 कर दिया और क्षतिपूर्ति के लिए लोकसभा चुनाव के बाद होने बाले चुनाव में एक राज्य सभा की सीट देने का वायदा तो जरूर किया मगर 2020 के राज्य सभा चुनाव में काँग्रेस को राज्य सभा की सीट देने से मना कर दिया.इसलिए उम्मीद की जाती है कि इस बार 2020 के विधान सभा चुनाव में बिहार में बडा दल होने के बाबजूद राजद अपने अकेले “लायन शेयर”लेने के बजाय काँग्रेस सहित महागठवन्धन के सभी घटक दलों के साथ सीटों को शेयर करने में उदारतापूर्वक न्यायसंगत हिस्सेदारी करेगा।विगत2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने में राजद से ज्यादा बेहतर प्र दर्शन काँग्रेस पार्टी का रहा है। 2010 के चुनाव में राजद को 22 सीटें मिली थी और 2015 में लगभग चार गुणा बढ़कर 81हुई जबकि काँग्रेस को 2010 में 4 सीटें मिली थी जो लगभग सात गुणा बढ़कर 27 हो गयी थी।