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मुजफ्फरपुर जिले में बाढ़ से मची है तबाही, राहत बचाव कार्य को रोज हो रहा प्रदर्शन

अब दो मुट्ठी अनाज के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं लोग, घर-बार सबकुछ हो चूका है बाढ़ में तबाह.

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सिटी पोस्ट लाइव : बिहार बाढ़ से बुरी तरह बेहाल है.राज्य के 12 से ज्यादा जिले बाढ़ की विभीषिका झेल रहे हैं.लाखों लोग बेघर हो चुके हैं. 60 लाख से ज्यादा आबादी बाढ़ की चपेट में आ चुकी है. कई जिलों में अब बाढ़ का पानी कुछ कम हुआ है, लेकिन अभी भी लोग दो मुट्ठी अनाज के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. मुजफ्फरपुर जिले के भरतुआ में बागमती नदी और धरफ री गांव में गंडक नदी के पानी में आया उफान भले ही अब कुछ शांत हो गया हो लेकिन बाढ़ के कारण पैदा हुईं मुसीबतें कम नहीं हो रही हैं. बाढ़ की तबाही से बेचैन लोग किसी तरह जान बचाकर अभी भी ऊंचे स्थानों पर शरण लिए हुए हैं. ऐसे लोग अपनी जिन्दगी को बचाने के लिए और भूख मिटाने के लिए मुट्ठी भर अनाज के लिए भी जद्दोजहद कर रहे हैं. आशियाना के नाम पर ऐसे लोग ‘ढमकोल’ की चारदीवारी और पॉलिथिन से छत बनाकर पूरे परिवार के साथ दिन गुजार रहे हैं. इस साल भी मुजफ्फरपुर में बाढ़ ने कहर बरपाया है. यहां के 14 प्रखंडों के 240 पंचायतों में गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, लखनदेई, वाया सहित कई छोटी नदियों ने जमकर कहर ढाया है.

मुजफ्फरपुर जिले के औराई प्रखंड के कुछ गांवों में नदी की धार कहर बरपा कर कुछ कम हुई है, लेकिन आज भी इस गांव में एक से दो फीट पानी है. धरफरी गांव के महादलित परिवारों की तीन दर्जन झोपड़ियों को बाढ़ का पानी बहाकर ले गया, तब से ये परिवार खनाबदोशों की तरह जिंदगी गुजार रहे हैं.गांव की रहने वाली अंजना देवी कहती हैं कि गंडक ने तो गांव और बधार सब कुछ उजाड़ दिया है. हम लोग तो अब गांव के बाहर झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं. वे कहती हैं कि अबोध बच्चों के लिए ना दूध मिल पा रहा है ना ही बुर्जुगों के लिए दवा उपलब्ध हो पा रही है. हम लोग दो मुट्ठी अनाज के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं.हमें देखने वाला कोई नहीं है. सब नेता वोट मांगने आते हैं लेकिन हर बाढ़ की तरह इस साल की बाढ़ में भी कोई नेता अब तक नहीं आया.

गांव के लेाग जिला प्रशासन के रहत बचाव कार्य के दावे को भी खोखला बता रहे हैं. भरतुआ, बेनीपुर, मोहनपुर, विजयी छपरा गांवों के कई परिवारों के लोग अभी भी ऊंचे स्थानों पर शरण लिए हुए हैं. बाढ़ पीड़ितों के लिए शरणस्थली बनी कुछ जगहों में बुनियादी सुविधाएं नहीं है. गांव के लोगों का कहना है कि इलाकों में सामुदायिक रसोई चल रही है लेकिन वहां से एक समय का ही भोजन दिया जा रहा है. अब अपनी समस्याओं को लेकर लोग सड़कों पर भी उतरने लगे हैं. विजयी छपरा सहित आसपास के गांव के लोगों ने दो दिन पहले राष्ट्रीय राजमार्ग 77 को अवरूद्घ कर बाढ़ पीड़ितों को सहायता देने की मांग की थी.

शुक्रवार को मुजफ्फरपुर-दरभंगा रोड को बाढ़ पीड़ितों ने जाम कर दिया था. मोहनपुर गांव के रामेश्वर कहते हैं कि आधे से ज्यादा खेतों में लगी फसलें बाढ़ के पानी में डूबकर बर्बाद हो गई हैं. अब बची-खुची फ सल बचाने के लिए लोग अपनी जिंदगी को दांव पर लगा रहे हैं. वे कहते हैं कि खेत में लगी फसल तो बर्बाद हो गई है लेकिन अब आशियाना ना बहे, इसके लिए जतन किए जा रहे हैं.इधर, सरकार खेतों में बर्बाद हुई फसल का सर्वेक्षण कराने में जुटी है.

मुजफ्फरपुर कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक रामकृष्ण पासवान के अनुसार  बाढ़ से फसलों को खासा नुकसान हुआ है. उन्होंने कहा कि जिले में 40 से 70 प्रतिशत फसलों को नुकसान हुआ है. उन्होंने कहा कि नुकसान का सर्वे कराया जा रहा है, उसके बाद ही नुकसान का सही आंकड़ा सामने आ पाएगा.उल्लेखनीय है कि इस वर्ष बाढ़ से मुजफ्फरपुर जिले की 14 लाख से ज्यादा की आबादी प्रभावित हुई है. जिला प्रशासन का दावा है कि जिले के बाढ़ प्रभवित इलाकों में 348 सामुदायिक रसोई घर चलाए जा रहे हैं, जिसमें 2.41 लाख से अधिक लोग प्रतिदिन भोजन कर रहे हैं.

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