सिटी पोस्ट लाइव : फेफड़ों को बर्बाद कर देनेवाला कोरोना का संक्रमण लोगों के लिए चिंता का सबसे बड़ा सबब बना हुआ है.लेकिन इस बीच वैज्ञानिकों को एक बड़ी कामयाबी मिली है. वैज्ञानिकों ने फेफड़ों के खराब हो जाने के बाद भी उन्हें स्वस्थ करने का तरीका खोज निकाला है. शोधकर्ताओं ने यह तकनीक ब्रेन-डेड (मस्तिष्क मृत) मरीजों से मिले छह खराब फेफड़ों पर आजमाई थी. फेफड़ों को रेस्पिरेटर यंत्र से जोड़कर इनमें सूअर का रक्त प्रवाहित किया, जिससे ये 24 घंटों में ही ‘जिंदा’ हो उठे.
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस सफलता के बाद इंसानों में यह प्रयोग किया जाएगा. अभी दान में मिले अधिकांश फेफड़े चंद घंटों में खराब हो जाते हैं. नई कामयाबी के बाद अब पहले से ज्यादा फेफड़े प्रत्यारोपण के लिए उपलब्ध रहेंगे. न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में फेफड़ा प्रत्यारोपण विशेषज्ञ डॉ. जैकरी एन कोन का कहना है, यह एक परिवर्तनकारी विचार है जिससे मरीजों की जान बचेगी.
नेचर मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित शोध के परिणाम को विज्ञान की कल्पना (साइंस फिक्शन) माना जा रहा है. कोलंबिया और वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता पिछले आठ साल से खराब फेफड़ों को पुनर्जीवित करने का काम कर रहे हैं. ताजा शोध में उन्होंने हरेक फेफड़े को ‘सांस’ देने के लिए प्लास्टिक के अलग-अलग बक्से में रखकर एक रेस्पिरेटर से जोड़ा था. फिर इन्हें जिंदा सूअर के गले की बड़ी नलिका से जोड़ दिया, जिससे उसका रक्त वाहिकाओं के जरिए फेफड़ों में बहने लगा. फिर एक दिन में ही ये बेकार फेफड़े बेहतर हो गए और प्रयोगशाला में पूर्ण स्वस्थ पाए गए.
इस तकनीक को एक्स वीवो लंग पर्फ्यूजन (ईवीएलपी) नाम दिया है जिसका प्रयोग अब इंसानों पर होगा. इसके तहत मरीज के गले में बड़ा कैथेटर डालकर फेफड़े में रक्त प्रवाहित किया जाएगा. फेफड़े का संपर्क कमरे में रखे रेस्पिरेटर से होगा. अमेरिकी लंग एसोसिएशन के मुताबिक, दान में मिले सिर्फ 28 फीसदी फेफड़े ही इस्तेमाल हो पाते हैं बाकी खराब हो जाते हैं. शोध में शामिल वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी के डॉ मैथ्यू डब्ल्यू बशेटा के मुताबिक, अगर दान किए 40 फीसदी फेफड़े भी प्रत्यारोपित हो पाएं तो काफी मरीजों को प्रतीक्षा सूची में नहीं रहना पड़ेगा.