सिटी पोस्ट लाइव : क़रीब 50 लाख नेपाली लोग विदेशों में काम करते हैं.इनमे से 30 से 40 लाख भारत में रहते हैं.7 लाख से ज्यादा भारतीय नेपाल में रहते हैं.ये वहां से अपने अपने देश में अपने परिवार के ख़र्च के लिए पैसे भेजते हैं.वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान विदेशों में रह रहे नेपाली नागरिकों ने केवल आधिकारिक स्रोतों के ज़रिए आठ अरब 80 लाख अमरीकी डॉलर नेपाल भेजे थे.ये बता पाना मुश्किल है कि इसी दौरान हुंडी और हवाला जैसे अनाधिकारिक चैनलों से कितने पैसे नेपाल आए थे.
विश्व बैंक के 2018 में किए गए एक आकलन के अनुसार भारत में काम कर रहे नेपाली कामगारों ने एक साल में एक अरब 30 लाख अमरीकी डॉलर से ज़्यादा रक़म नेपाल भेजी थी, जबकि नेपाल में काम कर रहे भारतीय कामगारों ने उसी दौरान क़रीब एक अरब 50 लाख अमरीकी डॉलर भारत भेजा था. इस तरह से देखा जाए तो नेपाल भारत में आने वाले कैश फ़्लो (रेमिटेन्स) का एक बड़ा ज़रिया है.अब आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि कितने नेपाली भारत में और कितने भारतीय नेपाल में काम कर रहे हैं.
इंटरनेशनल ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ माइग्रेशन (आईओएम) की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार क़रीब 30 से 40 लाख नेपाली कामगार भारत में रहते और काम करते हैं. हालांकि भारतीय अधिकारियों का अनुमान है कि ये संख्या इससे कहीं ज़्यादा है.आईओएम के अनुसार नेपाल में काम कर रहे भारतीयों की संख्या क़रीब 5-7 लाख है.भारत-नेपाल की सीमा खुली हुई है और मज़दूरों को आवागमन की पूरी आज़ादी है, इसलिए सही संख्या बता पाना बहुत मुश्किल है. भारत-नेपाल सीमा पार करने वाले बहुत सारे कामगार सिर्फ़ विशेष मौसम में एक दूसरे के यहाँ आते-जाते हैं. मिसाल के तौर पर तराई-मधेस क्षेत्र में रहने वाले नेपाली मज़दूर फसल के समय पंजाब और हरियाणा जाते हैं और बिहार और उत्तर प्रदेश के कई मज़दूर इसी दौरान नेपाल आते हैं. नेपाल के कई मज़दूर ख़ास मौसम में भारत मज़दूरी करने के लिए जाते हैं.
भारत और नेपाल सदियों पुराने रिश्ते में बंधे हैं और ख़ासकर 1950 के शांति और मैत्री संधि के कारण दोनों देशों में बिना किसी रोक-टोक के लोगों का आना जाना होता रहा है.लोगों के आने जाने का कोई भी आँकड़ा मौजूद नहीं है और इसीलिए ऊपर पूछे गए दोनों सवालों का सही जवाब न भारत के पास है और न ही नेपाल के पास.ऐसी परिस्थिति में 10 जुलाई को नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी करते हुए ये पूछकर कि भारत में काम कर रहे नेपाली कामगारों को वो तमाम सुविधाएँ और सुरक्षा क्यों नहीं दी जाए, जो दूसरे देशों में काम कर रहे नेपाली कामगारों को मिलती हैं, नेपाल सरकार की परेशानी बढ़ा दी है.
अदालत ने नेपाल की सरकार को 15 दिनों के अंदर नोटिस का जवाब देने को कहा है.नेपाल की सरकार ने अपने नागरिकों को दुनिया के 170 देशों में रहने और काम करने की इजाज़त दे रखी है. हाल के वर्षों में नेपाल ने कई देशों से श्रम समझौतों पर दस्तख़त किए हैं.नेपाल ने विदेशी रोज़गार फंड भी बनाया है, जिसके तहत विदेशों में काम कर रहे नेपाली नागरिकों के ज़ख़्मी होने या उनकी मौत होने पर उनके परिजनों को मुआवज़ा दिया जाता है.नेपाली सरकार अपने कामगारों को विदेशी रोज़गार परमिट भी जारी करती है जिसके ज़रिए कोई कामगार 15 लाख नेपाली रुपए तक का बीमा करवा सकता है.
लेकिन ये सारे क़ानून और सुविधाएँ नेपाल के उन श्रमिकों पर लागू नहीं होती हैं, जो भारत में आकर काम करते हैं या जो भारतीय नागरिक नेपाल में काम करते हैं.दोनों ही देशों में ऐसे कामगारों की सही जानकारी नहीं है. इससे इस बात की आशंका पैदा हो गई है कि ज़रूरत पड़ने पर इन प्रवासी कामगारों को सुरक्षित प्रवासन या पर्याप्त वित्तीय मुआवज़ा नहीं मिल सकेगा.नेपाल की सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वालों में से एक निर्मल कुमार उप्रेती के अनुसार भारत में काम कर रहे नेपाली कामगारों के हितों की नेपाली सरकार के ज़रिए की जा रही अनदेखी नेपाल के विदेशी रोज़गार क़ानून का खुला उल्लंघन है.उनके अनुसार नेपाली प्रवासी मज़दूरों के लिए भारत भी अन्य देशों की तरह एक विदेशी मुल्क है. लेकिन विदेशी मज़दूर होने का कोई भी दस्तावेज़ी सूबत नहीं होने के कारण ये नेपाली नागरिक किसी भी तरह के मुआवज़े या सुविधा से वंचित रहते हैं, जो दूसरे देशों में काम कर रहे नेपाली कामगारों को मिलता है.
भारत-नेपाल सीमा पर आवागमन की आज़ादी के जहां कई फ़ायदें हैं वहीं इसके कुछ हानिकारक पहलू भी हैं.इस तरह के असुरक्षित और ग़ैर-पंजीकृत कामगारों की दयनीय स्थिति से अवगत लोग कहते हैं कि असंगठित क्षेत्र में काम करने के कारण उन्हें हमेशा इस बात का ख़तरा रहता है कि वो कभी भी ज़ख़्मी हो सकते हैं, उनके साथ दुर्व्यवहार किया जा सकता है और उनका शोषण हो सकता है, लेकिन इनसे बचने का उनके पास कोई रास्ता नहीं है.भारत में रहने और काम करने वाले नेपालियों की मदद करने वाली एक संस्था नेपाली जनसंपर्क समिति एंड मैत्री इंडिया के चेयरमैन बालकृष्ण पांडेय कहते हैं कि नेपाली कामगारों की सुरक्षा के उपायों के बारे में सोचना एक ऐसा मुद्दा है जिसकी दशकों से अनदेखी की गई है.
भारत-नेपाल की 1880 किलोमीटर सीमा के रास्ते सदियों से नेपाल के कामगार भारत आते रहे हैं. नेपाली अधिकारी कहते हैं कि उन्हें नेपाली कामगारों की परेशानियों की जानकारी है, उन्हें ये भी पता है कि नेपाली महिलाओं और बच्चों की तस्करी होती है.