इंफोसिस गुरु बने IPS अधिकारी विकास वैभव, विडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के जरिये पढ़ाया जीवन का पाठ

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सिटी पोस्ट लाइव : बिहार के सुपरकॉप IPS अधिकारी विकास वैभव एकबार फिर से चर्चा में हैं.आज उन्होंने इंफोसिस (Infosys) में कार्यरत अधिकारियों-कर्मचारियों को संबोधित किया.विकास वैभव ने वर्चुअल संवाद के दौरान कंपनी के कर्मचारियों से करीब डेढ़ घंटे तक बातचीत की. इस दौरान इंफोसिस के कई लोगों के सवालों के जबाब भी दिए. बातचीत के दौरान जब विकास वैभव ने कर्मचारियों को ये बताया कि वर्ष 2001 में उनका भी सलेक्शन इंफोसिस में हुआ था. इंफोसिस के कई लोगों ने उनसे कंपनी जॉइन करने की जगह यूपीएससी की तरफ जाने को लेकर भी कई सवाल पूछे .

विकास वैभव ने बताया कि उनकी उच्च शिक्षा आईआईटी कानपुर से हुई है. वहां से पढ़ाई करने के बाद अक्सर लोग कॉरपोरेट की दुनिया का रूख करते हैं. लेकिन वे अपने आपको यहीं तक सीमित नहीं रखना चाहते थे. अपने देश के लिए कुछ अलग कार्य करना चाहते थे. साल 2001 में आईआईटी कानपुर से ग्रेजुएट होने के बाद वे 2003 में आईपीएस बने. बतौर आईपीएस अधिकारी विकास वैभव बिहार के कई नक्सल प्रभावित जिलों में कार्य कर चुके हैं. इसके अलावा उन्होंने नेशनल इंवेस्टिगेटिंग एजेंसी (NIA) में भी बतौर एसपी और बिहार की राजधानी पटना के एसएसपी के रूप में अपनी सेवाएं दी हैं. वर्तमान में वो बिहार एंटी टेररिस्ट स्‍क्वैड यानी एटीएस में डीआईजी के पद पर कार्यरत हैं. सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाले अभ्यर्थी इन्हें कॉपगुरु के नाम से पुकारते हैं. विकास वैभव मूल रूप से बिहार के बेगूसराय जिले के बीहट के रहने वाले हैं.

इतिहास में रूचि रखने वाले विकास वैभव साइलेंट पेजेज ट्रेवल्स इन द हिस्टोरिकल लैंड ऑफ इंडिया के नाम से ब्लॉग भी लिखते हैं. इस ब्लॉग में वे देश के अलग अलग हिस्सों से जुड़ी ऐतिहासिक तथ्यों के बारे में जानकारी देते हैं. वे कॉप इन बिहार और इंटलेक्चुअल ट्रेडिशन के नाम से दो और ब्लॉग भी लिखते हैं. इसके अलावा विकास अपने यू ट्यूब चैनल विकास वैभव आईपीएस और फेसबुक पेज के माध्यम से सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों का मार्गदर्शन भी करते हैं. इसलिए लोग इन्हें कॉपगुरु भी कहते हैं. वे समय निकालकर पटना स्थित चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में लेक्चर भी देते रहते हैं.

साल 2019 में विकास वैभव को सत्येंद्र दुबे पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. यह पुरस्कार पारदर्शिता और ईमानदारी के साथ कार्य करने वाले आईआईटी के पूर्ववर्ती छात्रों को दिया जाता है. आईआईटी कानपुर के भूतपूर्व छात्र सत्येंद्र दुबे ने 2003 में स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना में चल रहे घोटालों के बारे में प्रधानमंत्री को चिठ्ठी लिखी थी, जिसके बाद बिहार के गया जिले में उनकी हत्या कर दी गई थी. वर्ष 2005 में उनके सम्मान में इस पुरस्कार की शुरुआत की गई है. तब से यह पुरस्कार हर वर्ष दिया जाता है. पहला पुरस्कार दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को मिला था.

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