सिटी पोस्ट लाइव : चमार रेजिमेंट की स्थापना 1943ई. में द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अंग्रेजी हुकूमत द्वारा अन्य रेजिमेंट की तर्ज पर की गई। उस समय में जाति और समुदायों के नाम पर बने तमाम रेजीमेंट भारतीय सेना में अब भी मौजूद हैं, लेकिन उन तमाम रेजीमेंट में सिर्फ चमार रेजीमेंट को ही भंग किया गया। इस समुदाय के साथ ऐसी दोहरी नीति का व्यवहार आखिर क्यों। अगर चमार रेजीमेंट के साथ-साथ अन्य सभी रेजीमेंट को भी भंग कर दिया जाता तो कोई परेशानी की बात नहीं थी। यह रेजीमेंट 1943 से 1946 ई. यानि 3 साल तक अपने अस्तित्व में रही, 3 साल बाद इसे अस्तित्वविहीन कर दिया गया। जिसका प्रमुख कारण था कि अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा आजाद हिंद फौज से मुकाबला करने चमार रेजीमेंट को कैप्टन मोहनलाल कुरील जी के नेतृत्व में सिंगापुर भेजा गया,लेकिन कैप्टन कुरील ने देखा कि अंग्रेज अपने कूटनीति चाल से चमार रेजीमेंट के सैनिकों द्वारा अपने देशवासियों को ही मरवा रही है। यह देखते ही उन्होंने इसको #आईएनए में शामिल कर सुभाष चंद्र बोस जी के साथ अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध छेड़ी।
अंग्रेजों से युद्ध के दौरान चमार रेजीमेंट के सैकड़ों सैनिकों ने अपनी प्राणों कि आहुति दी। इस युद्ध के दौरान कैप्टन मोहनलाल कुरील को अंग्रेजों द्वारा युद्धबंदी भी बनाया गया। कुछ सैनिक जो म्यांमार एवं थाईलैंड के जंगलों में भटक गए थे, उनमें से जो पकड़े गए उन्हें अंग्रेजों द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया। चमार रेजिमेंट का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है। इतना ही नहीं चमार रेजीमेंट को उस समय दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेना जो जापान की मानी गई थी उसे हराने के लिए अंग्रेजों ने चमार रेजिमेंट का इस्तेमाल किया। जापान के कोहिमा के मोर्चे पर इस रेजीमेंट ने बुद्धिमानी,बहादुरी एवं पूरी तत्परता से लड़ाई लड़ी नतीजतन इसे #बैटलऑफकोहिमा_अवार्ड से नवाजा गया। चमार रेजीमेंट के देशप्रेम एवं अंग्रेजों की बात ना मानकर उनके ही विरुद्ध लड़ाई छेड़ने हेतु अंग्रेजी हुकूमत द्वारा 1946ई. चमार रेजीमेंट को प्रतिबंधित किया गया, तब से लेकर अब तक चमार रेजिमेंट अपने अस्तित्व में नहीं आया।
अगर उस समय चमार रेजीमेंट अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह ना छोड़कर, उनके कूटनीति चाल के तहत अपने सैनिकों के हाथों अपने ही देशवासियों को मारती तो देश की आजादी की राह में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता। वर्तमान परिदृश्य में चमार रेजिमेंट की स्थापना देशहित में एक बड़ा कदम होगा। साथ ही चमार रेजिमेंट के उन सैकड़ों सैनिकों को जिन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध छेड़कर अपने प्राणों की आहुति दी। उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब देश में चमार रेजीमेंट को अन्य रेजीमेंट की तरह पुनः स्थापित किया जाए।
कोरोना संक्रमण को लेकर थोड़ा विवश और लाचार हूं, किंतु जैसे ही इस संक्रमण का प्रभाव कम हो जाएगा तदोपरांत मैं उपेंद्र रविदास चमार रेजीमेंट के पुन: अस्तित्व में लाने हेतु केंद्र सरकार के समक्ष एक बड़े आंदोलन के साथ अपनी बातों को रख लूंगा। सारी बाधाओं को दूर कराकर चमार रेजिमेंट की स्थापना सुनिश्चित करूंगा। आप तमाम हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले चमार संगठन से संबंध रखने वाले लोग इस आंदोलन में आपका सहयोग अपेक्षित है। आप सब के सहयोग से ही यह सफल हो पाएगा।
उपेंद्र रविदास