रेलवे के 85 फ़ीसदी किराया माफ़ करने के दावे की क्या है सच्चाई?
सिटी पोस्ट लाइव :प्रवासी मजदूरों से रेल किराया वसूले जाने को लेकर जब हंगामा हुआ तो शाम होते-होते ये खबर हर खबरिया चैनलों की सुर्खियाँ बन गई कि रेलवे केवल 15 फीसदी किराया वसूल रही है, वो भी राज्य सरकारों से. ये भी ख़बर चली कि केवल कांग्रेस शासित राज्य ही अप्रवासी मजदूरों से किराया वसूल रहे हैं. रेलवे की तरफ से स्वास्थ्य मंत्रालय ने सफाई दी और कहा, “केंद्र या रेलवे ने कभी भी किसी वर्कर से चार्ज करने की बात नहीं की है. उन्होंने बताया कि किराए का 85 फीसदी हिस्सा रेलवे पहले से दे रही है और 15 प्रतिशत राज्य को देना होता है.”
मंगलवार को गृह मंत्रालय की अधिकारी ने बताया, “भारतीय रेल ने प्रवासी श्रमिकों के लिए अभी तक 62 स्पेशल ट्रेनें चलाई हैं. और लगभग 70 हज़ार यात्री इस सुविधा का उपयोग कर रहे हैं. आज 13 और ऐसी ट्रेने चलाए जाने की उम्मीद है.”गृह मंत्रालय का एक सर्कुलर बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने ट्वीट किया. उसमें लिखा था कि ‘किसी स्टेशन पर टिकट नहीं बेची जाएगी.’ये लाइन अप्रवासी मजदूरों के अलावा किसी और तरह के यात्री टिकट की बिक्री के लिए लिखी गई थी.
दरअसल अप्रवासी मज़दूरों के किराए से जुड़ा दूसरा सर्कुलर 2 मई को रेल मंत्रालय ने जारी किया. इसमें टिकट बिक्री को लेकर एक पूरा पैरा लिखा है. सर्कुलर के मुताबिक -जिस राज्य से श्रमिक ट्रेन चलेगी उस राज्य को रेलवे यात्रियों की संख्या बतानी होगी. ये संख्या 1200 के आस-पास की हो सकती है या फिर ट्रेन की क्षमता के 90 फीसदी तक होना चाहिए.जहां से भी ट्रेन चलना शुरू होगी, वहां पर मजदूरों की संख्या के हिसाब से रेलवे टिकट प्रिंट करवाएगी और वहां की राज्य सरकार को देगी.वहां की राज्य सरकार, मजदूरों को टिकट देगी, उनसे किराया लेगी और फिर रेलवे अधिकारियों को वो वसूला गया किराया सौंप देगी.
रेलवे के एक अन्य सर्कुलर में साफ़ तौर पर लिखा था कि टिकट में स्लिपर मेल एक्सप्रेस ट्रेन के मूल किराए के साथ-साथ 30 रुपए सुपरफास्ट चार्ज और 20 रुपए अतिरिक्त भी देना होगा.लेकिन सोमवार शाम होते-होते स्वास्थ्य मंत्रालय ने ऑन रिकॉर्ड कहा कि रेलवे पहले से 85 फीसदी किराया दे रही है.लेकिन रेलवे के जानकारों के अनुसार रेल किराए में सब्सिडी तो पहले से दी जाती रही है. सरकार का हमेशा से दावा रहा है कि यात्रियों को टिकट पर सब्सिडी वैसे भी दी जाती है.दूसरा, आम तौर पर आप कभी टैक्सी बुक करते हैं और ऐसी जगह जाते हैं जहां से वापसी में उन्हें कोई और सवारी ना मिले, तो टैक्सी वाला आपसे आने और जाने दोनों का किराया वसूलता है. ठीक उसी तरह रेलवे जब किसी राज्य सरकार या किसी पार्टी विशेष की अपील पर विशेष ट्रेन चलाती है तो जहां से जहां तक ट्रेन खाली जाती है तो उसका किराया भी अमूमन वसूला जाता है. लेकिन कोरोना संकट में रेलवे ने अपना ये किराया छोड़ दिया है.
तीसरी बात ये है कि सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए इन ट्रेनों में क्षमता के हिसाब से यात्री नहीं बैठाए जा रहे हैं. 1 मई को सबसे पहले तेलंगाना से जो ट्रेन चली थी. वो 24 डिब्बे की ट्रेन थी. जिससे 1200 मज़दूर अपने गृह राज्य पहुंचे थे. यानी हर डिब्बे में करीब 50 मज़दूर बैठे थे, जबकि इन डिब्बों में करीब 72 लोग बैठ सकते हैं. इसका मतलब इन श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में रेलवे ने ये नुकसान भी खुद उठाया.
कुल मिलाकर इस श्रमिक ट्रेन को खाली भेजने का चार्ज नहीं लिया जा रहा, सब्सिडी टिकट इसपर भी लागू है और ट्रेन अपनी पूरी कैपेसिटी में भरकर नहीं चल रही है. इन तीनों को मिलाकर रेलवे का दावा है कि वो 85% सब्सिडी दे रही है. सोमवार को सोशल मीडिया पर कई ऐसे भी दावे किए गए कि सिर्फ कांग्रेस शासित राज्यों ने ही प्रवासी मज़दूरों से किराया वसूला है.बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने भी ट्वीट में कांग्रेस की ये कहकर टांग खींची कि मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार किराया दे रही है और कांग्रेस राज्य सरकारों को कहिए कि वो भी खुद दें.लेकिन दो मई के रेल मंत्रालय के सर्कुलर में साफ तौर पर ये निर्देश था कि राज्य सरकारें यात्रियों से किराया लेकर एक मुश्त रेलवे को देगी. इसका मतलब ये हुआ कि मंत्रालय ने सभी राज्य सरकारों को मज़दूरों से किराया वसूलने के लिए कहा था. उनमें बीजेपी और कांग्रेस शासित दोनों तरह के राज्य भी शामिल थे.
पूरी ख़बर जब गर्म हुई तो बिहार की बीजेपी सर्मथक नीतीश सरकार ने ये ऐलान किया कि वो बिहार लौट रहे मज़दूरों के रेल किराए का पैसा लौटाएंगे. लेकिन उन्होंने ये कहा कि वो मज़दूरों के बिहार पहुंचने के 21 दिन बाद पैसा देंगे, जब वो अपना क्वारंटाइन पूरा कर चुके होंगे.सोमवार को ही केरल से 2,310 प्रवासी मज़दूरों को लेकर दो ट्रेनें बिहार पहुंची. इन मज़दूरों ने अपना रेल किराया खुद दिया. स्थानीय मीडिया में आ रही रिपोर्ट्स के अनुसार इन्होंने 910 रुपये में टिकट खरीदी.विशेष ट्रेन से गुजरात से झारखंड और बिहार जाने वाले मज़दूरों से भी गुजरात सरकार ने 715 रुपए वसूले. 10 साल से गुजरात के सूरत में रहकर मज़दूरी कर रहे मजदूरों ने बताया उन्होंने 715 रुपए में टिकट खरीदी.
बीजेपी शासित राज्य मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी राजनीति बढ़ते देख सोमवार को ट्वीट कर कहा कि श्रमिकों का किराया प्रदेश सरकार वहन करेगी. जबकि प्रवासी मज़दूरों से भरी ट्रेनें इससे पहले ही राज्य में आने लगी थी. शनिवार दो मई को महाराष्ट्र के नासिक से मध्य प्रदेश के भोपाल में विशेष ट्रेन पहुंची थी.
वहीं कांग्रेस की गठबंधन सरकार वाले झारखंड में भी प्रवासी मज़दूरों से किराया वसूला गया और केरल से झारखंड आने वाले मज़दूरों ने बताया कि उन्हें 875 रुपये का भुगतान करना पड़ा.विशेष ट्रेन के ज़रिए केरल के तिरुवनंतपुरम से झारखंड के जसीडीह पहुंचे सभी मज़दूरों ने भी कहा है कि उन्होंने टिकट के पैसे दिए. बीबीसी के सहयोगी पत्रकार रवि प्रकाश ने बताया कि 4 मई को ऐसी तीन ट्रेनें झारखंड पहुंची, जिनमें यात्रियों को पैसे देने पड़े.वहीं कांग्रेस शासित राजस्थान के कोटा से चले लोगों से भी किराया वसूले जाने की बात सामने आ रही है. सोशल मीडिया पर टिकट शेयर की जा रही है, जिसपर कीमत 740 रु लिखी है.
उत्तर पश्चिमी रेलवे की जयपुर डिवीजन डीआरएम मंजूषा जैन का कुछ और ही कहना है.उन्होंने कहा कि राजस्थान से विशेष ट्रेन से गए प्रवासी मजदूरों का किराया राजस्थान सरकार ने जमा करा दिया है. ऐसी विशेष ट्रेन का किराया हम यात्रियों से नहीं ले रहे हैं. कोटा और तेलंगाना से जो अन्य ट्रेनें झारखंड पहुंची उनमें किसी को किराया नहीं देना पड़ा और सरकार ने पैसा चुकाया.
दरअसल, बीजेपी सरकार सोमवार को साफ तौर पर राजनीतिक दबाव में आई और चीज़ों को कवर-अप करने की कोशिश करती भी दिखी. उनका मानना है कि जिस कांग्रेस के लिए कहा जाता रहा है कि वो मुद्दों पर स्टैंड नहीं लेती है, उसने इस मुद्दों को काफी बड़े स्तर पर उठाया.वहीं राजनीतिक विश्लेषक प्रदीप सिंह मानते हैं कि ये राजनीतिक दबाव से ज़्यादा कंफ्यूजन का मामला लगता है.उनका कहना है, “राज्य सरकारें पहले बसों से तो अपने लोगों को अपने खर्चे पर ले जाने को तैयार थीं, लेकिन ट्रेन का किराया भरने से वो मना कर रही थीं. इसलिए केंद्र सरकार के सामने दुविधा रही होगी कि वो प्रवासी मज़दूरों से किराया ले या ना लें. जिसके बाद किराया लेने के निर्देश जारी किए होंगे. हालांकि परेशान स्थितियों से गुज़र रहे मज़दूरों से किसी भी तरह का पैसा लेना ठीक नहीं है.”
सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही ट्रेन टिकटों में किराया औसतन 800 रु तक देखने को मिल रहा है. जबकि एक दिहाड़ी मज़दूर आम तौर पर 200 से 600 रुपए प्रतिदिन के बीच कमाता है और एक महीने से ज़्यादा वक्त के लॉकडाउन में तो उनका काम भी बंद था. विपक्ष और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार के इस रवैया को अमानवीय बताया.सरकारी अधिकारियों ने शुरू में इस कदम का ये कहते हुए बचाव भी किया था कि ये ज़रूरी भी है ताकि ‘असल में फंसे हुए’ लोग ही रेल सेवा का इस्तेमाल करें.रेलवे बोर्ड के चेयरमैन वी के यादव ने एक स्थानीय अख़बार से कहा था कि टिकट निशुल्क कर दी तो लोगों की स्क्रीनिंग में मुश्किल हो सकती है और ये सेवा सिर्फ प्रवासी मज़दूरों और फंसे हुए छात्रों के लिए शुरू की गई है.